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________________ जैनाचार्यों का छन्द-शास्त्र को अवदान : ४१ से उनके प्रथम उल्लेख का श्रेय जयकीर्ति को ही है। ___जयकीर्ति द्वारा उल्लिखित नवीन मात्रिक छन्द हैं- द्विपदी,अञ्जनाल, कामलेखा, उत्सव, महोत्सव, रमा, लयोत्तरा।। रत्नमञ्जूषा अपरनाम छन्दोविचिति इस अज्ञातकर्तृक संस्कृत रचना में आठ अध्याय हैं। मुख्यत: वर्णवृत्त विषयक इस कृति में कुल २३० सूत्र हैं। इसमें प्राप्त कुल छन्दों के नाम छन्दोऽनुशासन के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होते। प्रथम अध्याय के २६ सूत्रों में ग्रन्थ में प्रयुक्त चिह्नों तथा पारिभाषिक शब्दों के निर्देश हैं। द्वितीय अध्याय के २८ सूत्रों में आर्या, गीति, आर्यागीति, गलितक तथा उपचित्रक वर्ग के अर्धसमवृत्तों का लक्षण प्रतिपादित है। तृतीय अध्याय के २८ सूत्रों में वैतालीय मात्रवृत्तों के मात्रासमक वर्ग गीतयामी, विशिखा, कुलिक, नृत्यगति और नटचरण के लक्षण वर्णित हैं। आचार्य हेमचन्द्र के अतिरिक्त नृत्यगति और नटचरण का निर्देश किसी अन्य छन्दशास्त्री ने नहीं किया है। चतुर्थ अध्याय के २० सूत्रों में ग्रन्थकार विषम वर्ण के उद्गाता, दामाबरा या पदचतुधव तथा अनुष्टुभवक्त्र का लक्षण प्रतिपादन तथा उदाहरण देता है। पञ्चम, षष्ठ और सप्तम अध्याय के क्रमशः ३७, ३८ और ३९ सूत्रों में समस्त वर्णवृत्तों का लक्षण तथा उदाहरण प्राप्त होता है। वर्णवृत्तों को छ:-छ: अक्षर वाले चार चरणों से युक्त गायत्री से लेकर उत्कृति तक के २१ वर्गों में विभक्त करके विचार किया गया है। पञ्चम अध्याय के प्रारम्भ में ग्रन्थकार ने समग्र वर्णवृत्तों को तीन वर्गों- समान, प्रमाण और वितान इनमें विभक्त किया है, परन्तु अध्याय पाँच से सात में उपलब्ध समस्त वृत्त वितान वर्ग के हैं। इस ग्रन्थकार द्वारा निर्दिष्ट ३५ वर्ण वृत्तों में से लगभग २१ से पिङ्गल और केदार दोनों अपरिचित हैं। ग्रन्थकार यहाँ हेमचन्द्राचार्य से प्रभावित प्रतीत होता है। अन्तिम आठवें अध्याय के १९ सूत्रों में प्रस्तार, नष्ट, उद्विष्ट, लमक्रिया, संख्यान और अध्वन् इन छ: प्रकार के प्रत्ययों का निरूपण है। रत्नमञ्जूषा-भाष्य रत्नमञ्जूषा पर अज्ञातकर्तृक वृत्ति रूप भाष्य उपलब्ध है। भाष्य के मङ्गलाचरण और उदाहरणों से भाष्यकार का जैन होना प्रमाणित होता है। इसमें प्राप्त ८५ उदाहरणों में से ४० उन-उन छन्दों के नाम सूचक हैं जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि छन्दों के यथावत् ज्ञान के लिए भाष्यकार ने उदाहरणों की रचना की है। छन्दों के नाम से रहित उदाहरण अन्य ग्रन्थकारों के प्रतीत होते हैं। रलमञ्जषा-भाष्य में अभिज्ञानशाकुन्तलम् (अङ्क १, श्लोक ३३) प्रतिज्ञायौगन्धरायण (२,३) इत्यादि के पद्य उद्धृत किये गये हैं। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.525047
Book TitleSramana 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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