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९० : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक से संचालित उद्योग को शिल्पकर्म या शिल्प भी कहा जाता था इसका रूप आधुनिक कुटीर उद्योग के समान था। प्राचीनकाल में शिल्प कौशल समाज के आर्थिक जीवन का मेरुदण्ड था। पूर्वमध्यकाल में इसी स्तम्भ के आधार पर आर्थिक पक्ष का सन्तुलित विकास सम्भव
हुआ।
___ हरिभद्र के काल में आजीविका के एक अच्छे साधन एवं आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से स्थानीय लघु उद्योगों का पर्याप्त महत्त्व था। समराइच्चकहा में वर्णित कुछ प्रमुख उद्योगों एवं व्यवसायों का वर्णन द्रष्टव्य है।
वस्त्र-उद्योग-समराइच्चकहा में कार्पटिक२६ नामक शिल्पी का उल्लेख कई बार हुआ है। कार्पटिक लोग वस्त्र तैयार करने का कार्य करते थे। पहनने के वस्त्रों में हरिभद्र ने अशुक (महीन रेशमी वस्त्र), पट्टांशुक (पाट सूत्र से बने रेशमी वस्त्र), चीनांशुक (अत्यधिक महीन रेशमी वस्त्र, चीन में निर्मित), दुकूल (दुकूल वृक्ष की छाल के रेशे से बना हल्का वस्त्र), देवदूष्य (मृदुल, महीन और रेशम के समान दिव्य वस्त्र), अर्ध चीनांशुक (आधा रेशमी और आधा सूती धागों से बना हुआ वस्त्र), क्षौमवस्त्र (अलसी की छाल से निर्मित वस्त्र), वल्कल वसन (पेड़ों की छाल से निर्मित जंगली जातियों अथवा साधु-संन्यासियों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र), आदि विविध भाँति के वस्त्रों का उल्लेख किया है।२७
शरीर पर धारण किये जाने वाले कुछ अन्य वस्त्रों में स्तनाच्छादन (स्तनों पर धारण किया जाने वाला, रत्नों से जटित, आधुनिक कंचुकी के समान) एवं उत्तरीय (कमर से ऊपर
ओढ़ने का वस्त्र) का उल्लेख मिलता है।२८ अन्य वस्त्रों में कम्बल (ओढ़े जाने वाला ऊनी वस्त्र), तुली (रुई से भरा हुआ तकिया), गण्डोपधान (बैठने का गोल तकिया), अलगणिका (सोते समय प्रयोग की जाने वाली मसनद), चेलवस्त्र (दरी, गलीचा, तम्बू आदि में प्रयुक्त होने वाला मजबूत कपड़ा) आदि का विवरण प्राप्त होता है।२९
समराइच्चकहा में वस्त्रशोधक ३° का भी उल्लेख है जिसका आशय रजक अर्थात् धोबी से है।
प्राचीन समय में सूती कपड़ों का निर्यात किया जाता था। काशी के वस्त्र इसमें भी विख्यात थे तथा अपरांत (कोंकण), सिन्ध और गुजरात में अच्छे कपड़े बनते थे।३१ नेपाल, सिन्धु और सौवीर तथा ताम्रलिप्ति सुन्दर वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध थे। ____ हरिभद्रकालीन वस्त्र उद्योग की समृद्धि की सम्पुष्टि अरब यात्रियों के वर्णनों से भी होती है। सुलेमान के अनुसार भारत से ९वीं शताब्दी ई० में उच्चकोटि के वस्त्रों का निर्यात विश्व के अन्य देशों को प्रचुरता से किया जाता था।३२ समसामयिक विदेशी वृत्तान्तों में भारतीय वस्त्र उद्योग की यह प्रशंसा हरिभद्रकालीन भारतीय वस्त्र उद्योग की समृद्ध स्थिति का निदर्शन है।
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