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प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन : ५९
४२- योनिप्राभृत- इसके ग्रन्थाङ्क ८०० (श्लोक ३२ अक्षर का) हैं। यह आचार्य धरसेन की रचना है और श्वेताम्बरों में प्रकीर्णक रूप में मान्य है। इसकी एकमात्र ताड़पत्रीय प्रति पूना में खण्डित अवस्था में है। विषयवस्तु शीर्षकानुसार है । १५
४३ - जम्बूचरितप्रकीर्णक—- इस नाम के दो ग्रन्थ हैं। एक जम्बूस्वामी का चरित्र है, जो ३१ अध्यायों में पद्मसुन्दर द्वारा सङ्कलित है। बहुत से विद्वान् इसे ही प्रकीर्णक मानने के पक्ष में हैं। दूसरा ग्रन्थ जम्बूप्रकरण या जम्बूद्वीपसमास के नाम से मिलता है। इसमें जम्बूद्वीप का भूगोल है। इसकी कई प्रतियाँ विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों में हैं। इसमें १२७ माथाएँ हैं। इन दोनों में से किसी का मुद्रण अभी तक नहीं हुआ है। जिनरत्नकोश में जम्बूचरित्र के तीन और नाम मिलते हैं— आलापकस्वरूप, जम्बूदृष्टान्त और जम्बू अध्ययन, जो प्रकीर्णक होने के द्योतक हैं । १६
उपरोक्त ४३ प्रकीर्णकों के अतिरिक्त कुछ ऐसे प्रकीर्णक हैं जो वर्तमान में प्राप्त नहीं हैं। यद्यपि उनके नाम यत्र-तत्र मिलते हैं। इनकी संख्या ४५ है । इनके नाम व प्रमाणभूत ग्रन्थों का विवरण निम्नप्रकार है
नाम
1
४४- अरुणोपपात
४५- आत्मविभक्ति
४६- आत्मविशुद्धि
४७- उत्थानश्रुत
४८- आशी विभावना
४९- कल्पाकल्प
५०- कल्पिका
५१- कृतिकर्म
५२ - क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति
५३ - गरुड़ोपपात
५४ - चरणविधि
५५ - चारणस्वप्नभावना
५६ - चुल्लकल्पश्रुत ५७ - तेजोनिसर्ग
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प्रमाणभूत ग्रन्थ
ठा० नं० पा०व्य०
० योगनन्दी
पा०
पा०
नं,
व्य०,
नं० प्रा०
व्य० पा०, योगनन्दी
नं०, पा०, ध०
नं०, पा०
ध०, ९७
ठा०, नं०, पा०, व्य०
ठा०, नं०, पा०, व्य०
नं०, पा०
व्य०, पा०, योगनन्दी
नं०, पा०
व्य०, पा०, योगनन्दी
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