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________________ भारतीय आर्य भाषाओं की विकास-यात्रा में अपभ्रंश का स्थान साध्वी डॉ० मधुबाला* भारतीय आर्य भाषाओं के विकास में मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल के अनन्तर वर्तमान काल की देश-भाषाओं का काल आता है। डॉ० सुनीति कुमार ने इसको 'इण्डो आर्यन पीरियड' कहा है। इस काल को 'आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल' कह सकते हैं। इस काल में भारत की वर्तमान प्रान्तीय भाषाओं की गणना की गयी है। __ वर्तमान प्रान्तीय आर्यभाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है। शौरसेनी अपभ्रंश से ब्रजभाषा, खड़ीबोली, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती और पहाड़ी भाषाओं का सम्बन्ध हैं। इनमें से मराठी, गुजराती और राजस्थानी का सम्बन्ध विशेषतया शौरसेनी एवं महाराष्ट्री अपभ्रंश के संयुक्त रूप से माना जाता है। मागध अपभ्रंश से भोजपुरी, उड़िया, बंगाली, आसामी, मैथिली, मगही आदि का विकास हुआ और अर्धमागधी से पूर्वी हिन्दी- अवधी आदि का, महाराष्ट्री से मराठी का सम्बन्ध जोड़ा जाता था। किन्तु आजकल विद्वान् इसमें सन्देह करने लगे हैं और इन दोनों में परस्पर सम्बन्ध नहीं मानते।" सिन्धी का द्रविड़ अपभ्रंश से सम्बन्ध कहा गया है। पंजाबी, शौरसेनी अपभ्रंश से प्रभावित समझी जाती है। इन भिन्न-भिन्न भाषाओं का विकास तत्कालीन अपभ्रंश के साहित्यिक रूप धारण कर लेने पर तत्कालीन प्रचलित सर्वसाधारण की बोलियों से हुआ। इनका आरम्भ काल १००० ईस्वी माना गया है। इस काल के बाद १३वीं-१४वीं शताब्दी तक अपभ्रंश के ग्रन्थों की रचना होती रही। इन प्रान्तीय भाषाओं के विकास के पूर्वकाल में वे सब भिन्न-भिन्न अपभ्रंशों से प्रभावित हुई दिखायी देती हैं। उत्तरकाल का अपभ्रंश-साहित्य भी इन प्रान्तीय भाषाओं से प्रभावित होता रहा। इस प्रकार प्रान्तीय भाषाओं के प्रारम्भिक रूप में और अपभ्रंश काल के उत्तर रूप में दोनों के साहित्य चिरकाल तक समानान्तर रूप से चलते रहे। __ आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल में आकर भाषाएँ संयोगात्मक से वियोगात्मक या विश्लेषात्मक हो गयी थीं। इस काल की सभी भाषाएँ अपभ्रंश से प्रभावित हैं। इस आलेख में हिन्दी को दृष्टि में रखकर उसका अपभ्रंश से भेद निर्दिष्ट किया गया है। *. . जैन दिवाकर सामायिक साधना भवन, इन्दौर, मध्यप्रदेश. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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