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________________ हिन्दी काव्य परम्परा में अपभ्रंश महाकाव्यों का महत्त्व : ३७ कामावस्थाओं का वर्णन एवं वियोग में कौआ उड़ाकर सन्देश भेजना, आदि बातों का पालन अपभ्रंश प्रबन्ध काव्यों की पद्धति पर हुआ है और फिर स्पष्ट रूप से चौपाई-दोहा, तथा गीतशैली का स्वतन्त्र प्रयोग अपभ्रंश कथाकाव्यों में मिलता है। हिन्दी का चौपाई, छन्द और अपभ्रंश का पद्धड़िया बहुतकर एक ही छन्द है। दोनों में सोलह-सोलह मात्राएँ होती हैं तथा दो पंक्तियाँ चार चरणों की होती हैं। आचार्य स्वयम्भू के पहले से भी यह छन्द प्रचलित रहा है। अतएव यह कड़वक शैली अपभ्रंश के काव्यों की विशेष प्रवृत्ति है। पं० विश्वनाथ के कथन से भी इस बात की पुष्टि होती है।१६ भारतीय साहित्य में यह पद्धति अपभ्रंश.काव्यों में ही प्रयुक्त देखी जाती है। परवर्ती विकास में पद्यबद्ध हिन्दी काव्यों में जैन कवियों द्वारा लिखित रचनाएँ इसी परम्परा का पालन करती हुई लक्षित होती हैं। उनमें अन्तर इतना ही है कि कड़वक शैली में जहाँ पद्धड़िया के अन्त में कोई भी छन्द जुड़ सकता था, वहाँ अपभ्रंश कथाकाव्यों की उत्तरकालीन प्रवृत्ति की भाँति द्विपदी या उसकी जाति के किसी छन्द का प्रयोग किया जाने लगा था। बरवै का भी प्रयोग मिलता है। इस प्रकार अपभ्रंश-कथाकाव्य-धारा में विकसित शैलीगत प्रयोग तथा छन्दोबद्ध कड़वक-रचना सूफी काव्य तथा प्रेमाख्यानक काव्यों में ही नहीं, तुलसीदास के रामचरितमानस में भी दिखायी पड़ती है। इस रूप में तथा प्रबन्धगत अन्य बातों में भी स्पष्ट रूप से जाने-अनजाने हिन्दी की साहित्यिक-परम्परा का विकास हुआ है।१७ सन्दर्भ-सूची १. प्रो० हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश-साहित्य, पृ० ३८७ से ४००. २. डॉ० सरला शुक्ला, जायसी के परवर्ती हिन्दी-सूफी कवि और काव्य, पृ० २७७. ३. वही. ४. डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पृ० ८०-८१ ५. डॉ० सरला शुक्ला, पूर्वोक्त, पृ० १७१. ६. वही, पृ० २०९. रवीन्द्र भ्रमर, “पद्मावत की कथा का लोकरूप', आलोचना, वर्ष ४, अंक ४, पृ० ३८-४४. ८. डॉ० शम्भूनाथ सिंह, हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप-विकास, पृ० ४०९. ९. डॉ० सरला शुक्ल, पूर्वोक्त, पृ० ४९२. १०. डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन, 'प्राकृत छन्दकोश', हिन्दुस्तानी, भाग २२, अंक ३-४, पृ० ४४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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