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साहित्य-सत्कार : १७७
प्रतीत होता है क्योंकि रामानन्द ने भी यवनों के अत्याचार और हिन्दुओं के मिथ्याचार से अपने समाज को मुक्ति दिलाने के लिए बड़ा शक्तिशाली आन्दोलन चलाया और एक धार्मिक-सामाजिक नवजागरण का शंखनाद किया था। इस महाकाव्य की का भी लेखक के अन्य महाकाव्यों के समान संक्षिप्त है किन्तु कवि ने अपनी उर्वर कल्पना शक्ति के सहारे उसका विस्तार करके दस सर्गों में पूर्ण किया है। प्रथम ऐहित्य सर्ग में तत्कालीन आर्य संस्कृति की पतनशीलता का वर्णन किया गया है। दूसरे सर्ग में भारतभूमि को यवनों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए राम का रामानन्द के रूप में अवतरित होने का संकल्प व्यक्त किया गया है। प्रयागवासी ब्राह्मण दम्पती के घर शिशु रामानन्द का जन्म होता है। तृतीय सर्ग में रामानन्द का काशी के श्रीमठ में राघवाचार्य से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने का प्रसङ्ग वर्णित है। चतुर्थ सर्ग में रामानन्द द्वारा जननी जन्मभूमि के उद्धारार्थ अपना जीवन समर्पित करने का सङ्कल्प लिया जाता है। पिता के आग्रह के बावजूद वे घर नहीं लौटते। यह दुःखद समाचार सुनकर माता सुशीला ने प्राण त्याग कर दिया और पिता पुण्यसदन भी विरक्त होकर घर से निकल गए।
पाँचवें सर्ग में रामानन्द का देशभ्रमण और देश की दुर्दशा का अवलोकन अङ्कित है। । षष्ठ सर्ग में कौल दुर्जनानन्द की शास्त्रार्थ में रामानन्द जी से पराजय तथा इसी प्रकार उनकी अन्य विजयों का प्रभावशाली वर्णन है। सप्तम सर्ग में तपःपूत्र रामानन्द को ऋतम्भरा प्रज्ञा का साक्षात्कार वर्णित है। आठवें सर्ग में विजययात्रा से लौटने पर राघवानन्द उन्हें गद्दी के नए नायक के रूप में मान्यता देकर स्वयं महाप्रयाण कर जाते हैं। नवें सर्ग में रामानन्द जगद्गुरु की पदवी प्राप्त कर श्रीमठ में विराजते हैं और उनकी छत्रछाया में विरक्त वैष्णवों के विशाल अखाड़े स्थापित होते हैं। नगर-नगर में राम मन्दिर बनवाये जाते हैं और जाति-पाँति के भेद-भाव से ऊपर उठकर सभी को अध्ययन-पूजन का क्रान्तिकारी कार्यक्रम पूरी गति से सञ्चालित होता है । अन्तिम दशम सर्ग में उनके बारह शिष्यों का उल्लेख है।
काव्य की भाषा प्राञ्जल खड़ी बोली है। प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग छन्दों का प्रवाह है । कवि विन्ध्यक्षेत्र का निवासी है और रचना में विन्ध्य की प्राकृतिक सुषमा का भी अच्छा वर्णन है यथा
'विन्ध्याचल की घाटी श्यामल, तरु-तृण वीरुध से आच्छादित | मृगाकीर्ण है वनस्थली, वन कुक्कुट मयूर रव कूजित। '
कवि का कविमन बड़ा उर्वर है और वे प्रतिवर्ष एक-दो काव्य रचनाएँ हिन्दी संसार को भेंट कर रहे हैं ! श्रीमठ के वर्तमान आचार्य परम श्रद्धेय स्वामी रामनरेशाचार्य का उन पर वरद हस्त है । आशा है कि शीतल छाया में कवि की काव्यशक्ति का निरन्तर विकास होगा और नितनूतन रचनाओं से वे हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि करते रहेंगे ।
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