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________________ ८ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री अभय जैन ग्रन्थालय के पञ्चदश पुष्प के रूप में सन् १९५६ में हुआ। इसमें बीकानेर राज्य के २६१७ तथा जैसलमेर के १७१ अप्रकाशित लेखों का संग्रह है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में शोधपूर्ण विस्तृत भूमिका दी गयी है। परिशिष्ट में बृहद् ज्ञान भण्डार की वसीयत, श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि उपाश्रय का व्यवस्थापत्र और पर्युषणों में कसाईबाड़ा बन्दी के मुचलके की नकल है। नाहटाजी ने लेख संग्रह के क्षेत्र में यह बहुत बड़ा काम किया है। ग्रन्थ के प्रत्येक पृष्ठ पर उनका कठिन श्रम झलकता है और उनकी अगाध विद्वत्ता ग्रन्थ के आधान्त तक। इस उत्कृष्ट कोटि के ग्रन्थ प्रणयन के लिए नाहटाद्वय की जितनी भी प्रशंसा की जाय, वह थोड़ी है। इसमें लगभग १०० चित्र भी दिये गये हैं। १४. सीतारामचौपाई- इस ग्रन्थ का सम्पादन भंवरलालजी नाहटा एवं अगरचन्दजी नाहटा ने किया है। इसका प्रकाशन सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट से संवत् २०१९ में हुआ है। महोपाध्याय कविवर समयसुन्दरजी १७वीं सदी के विद्वान् सन्त थे। आपका साहित्य बहुत विशाल है। आपने गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में साहित्य-सर्जना की है। आपकी पद्य रचनाओं में सीतारामचौपाई सबसे बड़ी रचना है। इसका परिमाण ३७०० श्लोक परिमित है। जैन-परम्परा की रामकथा को इस महाकाव्य में गुम्फित किया गया है। १५. रत्नपरीक्षा- ठक्कुरफेरु द्वारा विरचित यह ग्रन्थ लगभग आठ सौ वर्ष प्राचीन है। मूल ग्रन्थ प्राकृत-भाषा में रचित है। इसका हिन्दी अनुवाद अगरचन्द भँवरलाल नाहटा ने किया है। रत्नपरीक्षा-सम्बन्धी इने-गिने ग्रन्थों में इस ग्रन्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पुस्तक की भूमिका में विद्वान् सम्पादकों ने रत्नपरीक्षा-सम्बन्धी हिन्दी-साहित्य के ग्रन्थों का सविवरण उल्लेख किया है। इसमें चोटी के विद्वानों के लेख भी संग्रहीत हैं। परिशिष्ट में नवरत्नपरीक्षा, मोहरांरीपरीक्षा इत्यादि देकर पुस्तक को और भी उपयोगी बनाया गया है। प्रसिद्ध जौहरी श्री राजरूपजी टाँक ने रत्नों पर प्रकाश डालते हुए इस ग्रन्थ को विश्व-साहित्य में अजोड़ ग्रन्थ बतलाया है। १६. मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि- संवत् १९९६ में प्रकाशित अगरचन्द भँवरलाल नाहटा की यह एक अनुपम कृति है। इसकी प्रस्तावना डॉ० दशरथ शर्मा ने लिखी है। श्री अभय जैन ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित ७६ पृष्ठ की यह पुस्तक न्यू राजस्थान प्रेस ७३-ए चासाधोबापाड़ा स्ट्रीट, कलकत्ता द्वारा मुद्रित है। - १७. युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिचरितम्- प्रस्तुत पुस्तक उपाध्याय लब्धिमुनि द्वारा विरचित और भंवरलाल जी नाहटा द्वारा सम्पादित है। इसमें ६ सर्ग और १२१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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