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स्व० भँवरलालजी नाहटा
एक युगपुरुष
यह ग्रन्थ तीन दृष्टियों से अत्यन्त उपयोगी है। पहला दृष्टिकोण ऐतिहासिकता का है, द्वितीय भाषा की दृष्टि से और तृतीय साहित्यिकता की दृष्टि से इसमें कतिपय साधारण काव्यों के अतिरिक्त प्रायः अन्य सभी काव्य ऐतिहासिक दृष्टि से संग्रहीत किये गये हैं । अद्यावधि प्रकाशित संग्रहों से भाषा-साहित्य की दृष्टि से यह संग्रह सर्वाधिक उपयोगी है। श्री हीरालाल जैन ने इसकी विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लिखी है। ग्रन्थ में उन पाण्डुलिपियों का परिचय दिया गया है जिनका उपयोग इस ग्रन्थ में किया गया है। पाण्डुलिपि, ताड़पत्र, हस्तलिपि आदि से सम्बद्ध एकादश चित्रों से यह ग्रन्थ सुसज्जित है ।
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१०. समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि - भँवरलालजी नाहटा एवं अगरचन्दजी नाहटा के सम्पादकत्व में श्री अभय जैन ग्रन्थालय से प्रस्फुटित यह कृति अपना विशेष महत्त्व रखती है। इसमें कविवर समयसुन्दरजी की ५६३ लघु रचनाओं का संग्रह है। डॉ० हजारीप्रसादजी द्विवेदी ने इसकी भूमिका लिखकर इस ग्रन्थ के महत्त्व का प्रतिपादन किया है। इसमें सन् १६९७ के अकाल का बड़ा ही जीवन्त वर्णन है । वस्तुत: नाहटाजी ने इस ग्रन्थ का सम्पादन- प्रकाशन करके हिन्दी - साहित्य के अध्येताओं के सामने महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है।
बहुत
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११. युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि- भँवरलालजी नाहटा एवं अगरचन्दजी नाहटा ने यह ग्रन्थ लिखा है। इसका प्रकाशन श्री अभय जैन ग्रन्थमाला के बारहवें पुष्प के रूप में हुआ है। इसे लेखकों नेअपने स्व० पिता एवं पितामह शंकरदानजी नाहटा को समर्पित किया है। इसका प्रकाशन संवत् २००३ में हुआ ।
इस ग्रन्थ को लिखने के लिए लेखकद्वय को पर्याप्त श्रम करना पड़ा, तदर्थ उन्होंने जैसलमेर की यात्रा कर प्राचीन ज्ञान भण्डारों से चरित्रनायक से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सूरिजी से सम्बन्धित पूर्ण प्रमाणित यह प्रथम शोधपूर्ण ग्रन्थ है।
१२. क्यामखां रासो - इस ग्रन्थ के मूल रचयिता मुस्लिम कवि जान हैं। इसका सम्पादन भँवरलालजी नाहटा ने अगरचन्दजी नाहटा तथा डॉ० दशरथ शर्मा के साथ किया है। इसका प्रकाशन राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर, जयपुर की राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला से संवत् २०१० में हुआ। यह रासो अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इसकी साहित्यिक महत्ता उच्चकोटि की है। इसकी शैली में प्रवाह है। इसमें कवि ने यथाशक्ति मितभाषिता और सत्य का आश्रय लिया है। इसकी एकमात्र प्रति झुंझनू के जैन भण्डार प्राप्त हुई थी।
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१३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह - नाहटाद्वय की कीर्ति को चातुर्दिक प्रसारित करने वाले ग्रन्थरत्नों में से यह ग्रन्थ भी एक है। ग्रन्थ के प्राक्कथन लेखक प्रो० वासुदेवशरण अग्रवाल ने नाहटाजी के प्रकाण्ड पाण्डित्य, श्रमनिष्ठा और शोधरुचि की
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