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खरतरगच्छ - आद्यपक्षीयशाखा का इतिहास
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८.
सन्दर्भ : १. अगरचन्दनाहटा, भंवरलाल नाहटा, सम्पा०, ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह,
अभय जैन ग्रन्थमाला, पुष्प ८, कलकत्ता वि०सं० १९९४, पृ० ८१. श्री विनयसागरजी के मतानुसार यह शाखा वि०सं० १५६९ में अस्तित्व
में आयी। २. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, श्रीमद्बुद्धिसागरसूरि ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक
४२, अध्यात्म ज्ञानप्रसारमण्डल, पादरा, वि०सं० १९७३, लेखांक १३५२. ३. वही, भाग १, लेखांक ११०६.
पूरनचन्दनाहर, सम्पा० जैनलेखसंग्रह, भाग २, कलकत्ता १९२७ ई०, लेखांक १३८८. पं० बेचरदास दोशी, मणिधारीजिनचन्द्रसूरिकाव्याञ्जलि, पार्श्वनाथ विद्याश्रम लघु प्रकाशन ३, वाराणसी १९८० ई०, प्रस्तावना लेखक- महो० विनयसागर, पृ० १६-२०. महो० विनयसागर, सम्पा०, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, जिनमणिमाला, पुष्प ४,
कोटा १९५३ ई०, लेखांक १०३७. ७. वही, लेखांक ११६१.
ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृ० ३३३. अगरचन्द नाहटा भंवरलाल नाहटा, सम्पा० - बीकानेरजैनलेखसंग्रह, अभय
जैन ग्रन्थमाला, पुष्प १५, कलकत्ता, वीर सं० २४८४, लेखांक १९१९. १०. अगरचन्दनाहटा भंवरलालनाहटा, सम्पा० मणिधारीजिनचन्द्रसूरिअष्टम
शताब्दीस्मृतिग्रन्थ, दिल्ली, १९७१ ई०, भाग २, "साहित्यसूची", पृ०५०. ११. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, नवीन संस्करण,
बम्बई, १९८७ ई०, पृ० २७५; शीतिकण्ठ मिश्र, मरुगूर्जरजैनसाहित्यकाबृहदइतिहास, भाग २, पार्श्वनाथ
शोधपीठ ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६६, वाराणसी १९९४ ई०. पृ० ५५६. १२. साहित्यसूची, पृ० १४. १३. वही, पृ० ४३. १४. वही, पृ० ४३ १५. वही, पृ० ४९. १६. वही, पृ० ३४. १७. ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृ० ८१-८२. १८. मणिधारीजिनचन्द्रसूरिकाव्याञ्जलि, प्रस्तावना, पृ० ११. १९. वही २०. साहित्यसूची, पृ० ६२. २१. वही, पृ० ७२. २२. जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, नवीन संस्कारण, पृ० ३३१-३२.
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