SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक जिनमणिक्यसूरि मतिवर्धन (वि०सं० १७३८ में गौतमपृच्छाटीका के कर्ता) __ आनन्दनिधान (वि०सं० १७४८ में देवराजवच्छराजचौपाई एवं अन्य कृतियों के कर्ता) जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय' जिनोदयसूरि जिनसंभवसूरि जिनधर्मसूरि जिनचन्द्रसूरि 'तृतीय' जिनकीर्तिसूरि जिनबुद्धिवल्लभसूरि जिनक्षमारत्नसूरि जिनचन्द्रसूरि 'चतुर्थ' (वि०सं० २०००/ ई०स०१९४४ में स्वर्गस्थ हर्षकुशल के शिष्य दयारत्न भी खरतरगच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। उनके द्वारा रचित हरिबलचौपाई२० (रचनाकाल वि०सं० १६९१) और कापरहेडारास२१ (वि०सं० १६९५) ये दो कृतियाँ मिलती हैं। इनके शिष्य केसव (केशव) अपरनाम कीर्तिवर्धन द्वारा रचित भी कुछ कृतियां मिलती हैं,२२ जो इस प्रकार हैं सुदर्शनचौपाई, वि०सं० १७०३, जन्मप्रकाशिकाज्योतिष, वि०सं० १७वीं-१८वीं शती, दीपकबत्तीसी, भ्रमरबत्तीसी, प्रीतिसवैया। खरतरगच्छ-आद्यपक्षीयशाखा के मुनिजनों की ऊपर प्रदर्शित तालिका के मुनिजनों का हर्षकुशल, दयारत्न, कीर्तिवर्धन आदि का क्या सम्बन्ध रहा, यह ज्ञात नहीं होता? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525046
Book TitleSramana 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2002
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy