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में निर्गुण विशेषण का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है। यह परिभाषा सामान्यतया आत्मविरोधी-सी प्रतीत होती है; किन्तु इस परिभाषा की मूलभूत दृष्टि यह है कि यदि हम गुण का भी गुण मानेंगे तो अनवस्था दोष का प्रसंग आयेगा। द्रव्य के साथ गुणों की अपरिहार्यता है; किन्तु गुण में गुणों का सद्भाव नहीं है। वैशेषिक दर्शन में गुण की द्रव्य से स्वतन्त्र सत्ता मानी गयी है। उनके अनुसार द्रव्य जब उत्पन्न होता है तब प्रथम क्षण में वह निर्गुण होता है। बाद में समवाय के द्वारा द्रव्य और गुण का सम्बन्ध स्थापित होता है। जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य गुण का अविनाभावी सम्बन्ध है। जिस प्रकार द्रव्य की गुणों से पृथक् कोई सत्ता नहीं है उसी प्रकार गुणों की द्रव्य से पृथक् कोई अभिव्यक्ति नही होती। भट्ट अकलंक ने “नित्यं द्रव्यमाश्रित्य ये वर्तन्ते ते गुणा इति'' कहकर गुण की परिभाषा की है। गुण के भेद
गण के दो भेद किये गये हैं--- १. सामान्य या साधारण गुण तथा २. विशेष या असाधारण गुण। जो गुण समस्त द्रव्यों में समान रूप से पाये जाते हैं, सामान्य गुण कहलाते हैं। साधारण या सामान्य गुणों से केवल द्रव्यत्व की सिद्धि होती है और विशेष गुणों से द्रव्य विशेष की सिद्धि होती है जैसे- चैतन्य गुण जीव द्रव्य में ही होता है, शेष पांच द्रव्यों में नहीं। अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व ये दस सामान्य गुण पाये जाते हैं। प्रवचनसार की तात्पर्यवृत्ति के अनुसार अस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व, असर्वगतत्व, सप्रदेशत्व, अप्रदेशत्व, मूर्तत्व, साक्रियत्व, अक्रियत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, कर्तृत्व, अकर्तृत्व, भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व, अगुरुलघुत्व इत्यादि सामान्य गुण हैं।१२ नयचक्र, आलापपद्धति, द्रव्यानुयोगतर्कणा आदि ग्रन्थों में उपर्युक्त सामान्य गुणों के अतिरिक्त चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व चार सामान्य गुणों का उल्लेख और मिलता है।
विशेष गुण वे हैं जो समस्त द्रव्यों में समान रूप से उपलब्ध नहीं होते। दूसरे शब्दों में, वे विशेषताएं या लक्षण जिनके आधार पर एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से अलग किया जा सकता है, विशिष्ट गुण कहे जाते हैं। इन विशेष गुणों की संख्या सोलह हैज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, गतिहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, अवगाहहेतुत्व, चेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व। इनमें से जीव व पुद्गल में छ:-छ: तथा शेष चार द्रव्यों में तीन-तीन होते हैं। प्रवचनसार टीका तात्पर्यवृत्ति के अनुसार अवगाहनाहेतुत्व, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, रूपादिमत्व, चेतनत्व आदि विशेष गुण हैं। ये क्रमश: आकाश, धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और जीव के विशेष गुण हैं। द्रव्य के अनुसार उसके गुण भी मूर्त, चेतन होते हैं। अकलंक ने अस्तित्व,
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