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अंचलगच्छे मेरुतुंगसूरि आम्नाय वडनगरे सर्प विष उतारी श्रावक कियौ तिको आम्नाय छै।
२) ॐ क्ल्यूँ वँ हाँ क्रॉ क्षी हौँ क्ली ब्लूँ द्राँ द्रौं ज्वालामालिनि! झंकारिणि! वषं निर्विषं कुरु कुरु स्थावर विषं निर्विषं कुरु कुरु स्थावर विषं जङ्गमं जाठरं योगजं अपहर अपहर मण्डकं अमृतेन सिञ्जय उत्थापय दण्डेना क्रम्य विषम विषं ठःठः ठः स्वाहा।
__ जिस व्यक्ति को सर्प ने दंश दिया हो उसके माप का ही दण्ड लेकर उसे इस मंत्र से सात बार मंत्रित करना और उसके द्वारा दंशित व्यक्ति के सभी सांधाओं पर ताड़न करना अर्थात् वे ऊभे हो जाते हैं उसी प्रकार 'ॐ क्रॉ ग्रो मृ ठ:ठ:ठः' इस मंत्र से जल धारा देने से दंशित व्यक्ति ऊभे (खड़े) हो जाता है। મહા પ્રાભાવિક ઉવસગ્ગહરે તેત્ર
ચંદ્રાવલી ૭-વિષમવિષનિગ્રહક્કરયંત્ર
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