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जे जिण बांध्या ते तिणइ छूटइ। मरइ धन्वंतरि परीअषि खूटइ।। विषमा दे राणी पूछइ बात।।४। संकेत ॥६०।। नाग लोक मन हरखीआ, मनि भागुं विषवाद। कुंजहरणपुर मंडणुं, भरइ तिहां राउत भाद।।२।।
चालि भाद राओत भारेवा लागुं, नव ग्रह पाय पधारिआ। भूमिउ डंक पडिउ महीमंडलि, भाद राउत तिहां भारिआ। खड़हड़ियां मंदिर मिल्या सुर नर देव दैत्य तिणि निरखिआ भाद भारंतइ पृथ्वी भारी, नाग लोकमन हरखीआ।।३।।
पारधि।। विसह नयरचा अनंत सामी, वीनतड़ी अवधारि। कांइ तूं पृथ्वी भारइ सामी, खागल पाटि बयसारि।। चालि चालि वयसारि सामी, अणंत राजा वेगि करी तेड़ावीआ। नक्षत्र माला त्रूट पड़िस्यइ, चंद सूरज बेभारीया।। विष ऊलटिओ तणइ खागलि, कलिइ कोइ तिवार ए घूमिउ डंक पडिउ महिमंडली, चंद सूरजि वेऊं भारए।।४।।
पारधि।। सीह नयर सिण गारीए, डंक न कीजइ वाढ। सवा कोडि फण जे विषय रसइ, कुमर जिन घंट ताढि चालि हो।। दाढ विष वरसेवा लागुं, आज किमइ ऊगरसिइ। जिम घंट भारतइ अजीअन भारइ तूं विष तूटि मरेसइ।। हाकइ हणइ वेगि पचारइ, कुंअर जिम घंट भारइ। आठ अंग रुध्यां विष तोरइ, सीहनयर सिणगारीयइ॥५॥
पारधि।। विसहनयर थिकुनीकलइ, विसमुं एकल वीर। विष गाजइ विष गड़बड़इ, बरसइ डंक सरीर।। वरसइ डंक सरीरि अंगो मअंगइ मोडीइ। नव कुल नाग एकलइ भारया गुरुडइषजा तोडीआ।। छत्रू कोडि छणेदभारया, कोड बहुतरि नागिणी। सपत पाताल धिक इं नारायणि विसह नयर थिकु नीकली।।६।। पारधि।। पारखि राय नयर रुलीयामणुं डंक न कीजइ आलि। कुंअर पूछइ मारीआ, अमोघ सरोवर पालि।
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