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साकार कर सकें इसके लिये हम सभी को मिलकर वस्तुनिष्ठवादी होकर सामूहिक प्रयत्न करना आवश्यक है। संस्थान गतिशील बना रहे और शोधसंस्थाओं के मानचित्र पर उसका विशिष्ट स्थान रहे, यही हम सभी की कामना है।
श्रमण का प्रस्तुत अंक ५२वें वर्ष का प्रवेशांक है। विगत अंकों की भाँति हम इस अंक में भी जैन दर्शन, पर्यावरण, इतिहास आदि से सम्बन्धित शोध आलेख प्रकाशित कर रहे हैं। हमारा प्रयास यही होता है कि लेख प्रामाणिक हों और वे शुद्ध रूप में ही मुद्रित हों। सुधी पाठकों और विद्वत्जनों से हमारा विनम्र अनुरोध है कि वे अपने महत्त्वपूर्ण विचारों और सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करें ताकि हमें इसके स्तर को और ऊँचा उठाने में मदद मिल सके। श्रमण में जैन धर्म-दर्शन, इतिहास, संस्कृति, साहित्य आदि से सम्बद्ध अप्रकाशित आलेखों का स्वागत है।
भागचन्द्र जैन 'भास्कर'
प्रधान सम्पादक
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