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अंग्रेजी भाषा की उपेक्षा नहीं की जा सकती। ऐसे विद्वानों की हमारे संस्थान में बड़ी आवश्यकता है। संस्थान उन्हें शोध - योजनाओं के माध्यम से सम्बद्ध कर सकता है। यह भी सही है कि ऐसी विद्वत् परम्परा की अक्षुणता का यक्ष प्रश्न आज हम सभी के सामने है। प्राचीन परम्परा के जैन विद्वान् एक-एक कर इस दुनिया से विदा होते जा रहे हैं और नई पौध को उत्साहित नहीं किया जा रहा है।
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पार्श्वनाथ विद्यापीठ एक सर्वमान्य और असाम्प्रदायिक शोध संस्थान है। अभी तक यहाँ से लगभग ६० शोधछात्र पी-एच्०डी० की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और १५० से अधिक शोध-ग्रन्थों का यहाँ से प्रकाशन हो चुका है । इतना बृहद्कार्य किसी एक संस्थान के लिये गौरव की बात मानी जा सकती है। संस्थान जिस प्रकार सुन्दर परिवेश और परिसर में निर्मित हुआ है वह भी शोधछात्रों के लिये अपनी अकल्पित शोध साधना में सहयोगी बन जाता है। यहाँ के समृद्ध पुस्तकालय में लगभग ३५ हजार ग्रन्थों का समावेश है जिसमें जैन साहित्य के अतिरिक्त सभी अन्य सम्बद्ध विषयों पर उच्चश्रेणी के ग्रन्थ समाहित हैं।
यह प्रसन्नता की बात है कि श्री दिलीप शाह, डॉ० प्रेमचन्द गाड़ा आदि जैसे हमारे जैन बंधु समुद्रपार रहते हुए भी संस्थान के विकास में अपना और अपने सभी साथियों का सहयोग देने हेतु वचनबद्ध हुए हैं। अभी अमेरिका के १२८ लोगों का एक तीर्थयात्री संघ संस्थान में आया और इसे देखकर उन सभी ने अपार सन्तोष भी व्यक्त किया एवं यह विश्वास दिलाया कि सम्पूर्ण प्रवासी जैन समुदाय संस्थान के विकास में पूर्ण सहयोग प्रदान करेगा। इसके लिये हमारा संस्थान उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता प्रकट करता है।
संस्थान का भविष्य बहुत उज्जवल है। जैन संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये आज उसकी बड़ी आवश्यकता है। भारत के बाहर भी वह यदि इसी प्रकार एक केन्द्र स्थापित कर सके तो लक्ष्य तक पहुँचने में उसे और भी सुविधा हो सकेगी। यह भी प्रसन्नता की बात है कि अब संस्थान में प्रवासी भारतीयों के आवास आदि की भी समुचित व्यवस्था हो गयी है। वे यहाँ रहकर आसानी से अध्ययन कर सकेंगे।
आगामी सत्र से हम संस्थान में कतिपय नये उपक्रम प्रारम्भ करने जा रहे हैं। इसमें प्राकृत और जैनधर्म तथा योग और ध्यान के पाठ्यक्रमों को संचालित करना विशेष उल्लेखनीय है। इसके साथ ही प्राकृत अभिलेख, अंग एवं उपांग साहित्य आदि जैसे विषयों पर संगोष्ठियाँ और प्राकृत संस्कृत पाण्डुलिपि विज्ञान पर कार्यशाला भी संयोजित है। शोधग्रन्थों के प्रकाशन में भी और अधिक गतिशीलता लाने का संकल्प किया गया है। विश्वास है कि इन गतिविधियों से संस्थान तीव्रता से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकेगा। पूज्य आचार्यश्री सोहनलाल जी म०सा० के सपनों को हम
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