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सम्पादकीय
विद्यापीठ में आये हुए मुझे लगभग १८ माह हो चुके हैं। लगता है इस कार्यकाल का पर्यालोचन करना आवश्यक हो गया है। चारों ओर दृष्टिपात करने पर इतनी प्रसन्नता तो हो ही रही है कि प्रो० सागरमल जी के बाद मैं विद्यापीठ की प्रगति के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ सका हूँ। संस्थान के सचिव श्री भूपेन्द्रनाथ जैन एवं सहसचिव श्री इन्द्रभूति बरड़ जैसे कर्मठ समाजसेवी इसकी प्रगति में पूरे उत्साह के साथ जुड़े हुए हैं। संस्थान समाज से और भी घनिष्ठतापूर्वक जुड़ रहा है।
परमपूज्य आचार्य श्रीराजयशसूरि जी म० सा० के पुनीत आशीर्वाद ने हमारे पुराने सम्बन्धों में और भी घनिष्ठता ला दी है। उन्हीं के आशीर्वाद से हम संस्थान में ८ कमरों का एक अति सुसज्जित छात्रावास तथा उपाध्याय यशोविजय स्मृति मन्दिर का निर्माण
और भोजनशाला की स्थायी व्यवस्था करा सके हैं। रंगोली प्रदर्शनी, चित्रकला प्रतियोगिता आदि विभिन्न आयोजन भी उन्हीं के सहयोग का ही परिणाम है। ५१ लाख रुपये की प्रकाशन योजना भी उन्होंने ही दी थी। यह हमारा दुर्भाग्य था कि हम उसे कार्यान्वित न कर सके। अभी पार्श्वज्ञानरथ महाराजश्री के साथ यात्रा कर रहा है। विश्वास है कि उसके माध्यम से काफी धनराशि इकत्र हो जायेगी।
काशी हिन्द विश्वविद्यालय से शोध हेतु मान्यता प्राप्त यह संस्थान वीर बहादर सिंह पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, जौनपुर से भी शोध-सम्बन्धी मान्यता प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहा है। इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है, बस स्वीकृति-पत्र आते ही संस्थान में किसी भी विश्वविद्यालय का स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त छात्र शोधकार्य के लिये पंजीकृत किया जा सकेगा।
इसी के साथ-साथ एक अन्य उपलब्धि का भी उल्लेख करना चाहूँगा। इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवान्सड स्टडी, शिमला ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ को अपने सहयोगी संस्था के रूप में स्वीकार कर लिया है। इसके माध्यम से अब हम संगोष्ठी, कार्यशाला, व्याख्यानमाला तथा जैन साहित्य प्रकाशन की योजनायें कार्यान्वित कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत हर योजना के लिये वहाँ से एक लाख रुपये उपलब्ध हो सकेंगे।
__ हमारा सम्पूर्ण प्राच्य साहित्य प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और मरु-गुर्जर भाषा में है। संस्थान में ऐसे तलस्पर्शी विद्वानों का होना नितान्त आवश्यक है जो इन भाषाओं में निष्णात हों। इसके साथ-साथ प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व तथा दर्शन एवं भाषाविज्ञान की भी जानकारी उन्हें होनी चाहिए। इनकी शोध-साधना में
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