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________________ २६ तुषार आना प्रारम्भ हो जाता है तथा शिशिर में शीत के प्रभाव के कारण पथिकों ने चलना बन्द कर दिया है । १४ वसन्त के आते ही तन में संकोच और मन में सुख का विकास होने लगता है । नायिका अनुभव करती है कि दसों दिशाओं में रमणीयता का विकास हो रहा है। विविध वेशधारी नवीन पुष्प और पत्ते निकल आए हैं तथा नवीन सरोवर रति विशेष से बहुत शोभाशाली प्रतीत हो रहे हैं । १५ यह ऋतु वर्णन प्रचलित साहित्यिक मूल्यांकन की कसौटी के आधार पर एक परम्परा का निर्वाह भर लगता है, किन्तु क्षणभर के लिए एक किनारे सरका दिया जाए तो कुछ नई बातें भी प्रकट होती हैं। पहली बात यह कि इस ऋतु वर्णन में ऋतुओं स्वरूप की भरपूर जानकारी है। दूसरी यह कि इसमें प्रकृति का सहज सौन्दर्य विद्यमान है, जो कि एक ओर पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है तो दूसरी ओर किसी को यह मानने में आपत्ति नहीं होगी कि सन्देशरासक का प्रकृति वर्णन कालिदास के प्रकृति-वर्णन के समान उन्मुक्त नहीं है अपितु स्वाभाविक है। नायिका के मुख से कवि ने ऋतुवर्णन के व्याज से प्रकृति का जो चित्र खींचा है, वह साधारण जीवन से भी जुड़ा हुआ है, यही कारण है कि वह पथिक नाम परिगणन में अशोक के साथ धतूरे, तूमड़े, ढाक, कनेर, गेंदा, बेर, खजूर और तुलसीदल का नाम लेना नहीं भूलता। इससे भारतीय जीवन और परम्परा में प्रकृति के महत्त्व के साथ ही प्रकृति के साधारण तत्त्वों से निसृत सौन्दर्य के जीवन से जुड़ाव को समझा जा सकता है। इस प्रसंग में तीसरी बात यह है कि ऋतुवर्णन में ऋतुओं का जो प्रभाव चित्रित किया गया है, वह ध्यान खींचने वाला है। जब ग्रीष्म ऋतु आती है, तो धरती और आकाश जलने लगता है, नदियों की धारा जल सूखने के कारण पतली हो जाती है, आम के वृक्ष फल-भार से झुकने लगते हैं, शीतलता पाने के लिए चन्दन का प्रयोग किया जाने लगता है। जब वर्षा आती है, तो आकाश में मेघ घुमड़ते हैं, भारी वर्षा से जल ही जल हो जाता है, जिससे पथिकों को अपनी पादुकाएँ हाथ में लेकर चलना पड़ता है, घोड़ें वाले मार्ग बन्द हो जाते हैं आवागमन नावों से होता है, मच्छर गायों तक को परेशान कर डालते हैं, दादुरों का शोर कान फोड़ने लगता है। जब शरद आता है, तो चन्द्र ज्योत्सना की आभा फैलने लगती है, सर्प भूमिगत हो जाते हैं, नदियों और सरोवरों का जल निर्मलं हो जाता है, कमल फूलने लगते हैं, नव यौवनाएँ अपने कंत के साथ विहार करती हैं, जबकि वियोगिनियां दुःखी होती हैं अर्थात् सुखी का सुख बढ़ जाता है और दुखी का दुःख । जब हेमन्त का आगमन होता है, तो पाला शुरु हो जाता है, होठों को फटने से बचाने के लिए सौन्दर्य-प्रसाधनों में मोम मिलाया जाने लगता है, छतों पर सोना बन्द कर दिया जाता है। जब शिशिर का आगमन होता है तो वृक्षों के पत्ते टूटकर गिरने लगते हैं, कुहरा छा जाता है, लोग ईख का रस पीते हैं और जब वसन्त का आगमन होता है, तो मलयगिरि समीर बहने लगता है, स्त्रियों के मन में संगीत उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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