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________________ २४ रूप को प्रकृति के माध्यम से या उसी के रूप में प्रकट किया है। अब्दुल रहमान की यह अभिव्यक्ति मंगलाचरण के सामान्य अर्थ के साथ ही हमें प्रकृति के साथ भावात्मक स्तर पर भी जोड़ती है और एकात्म का मार्ग दिखाती है। सन्देशरासक का कथानक बहुत छोटा सा ही है। विजयनगर की एक विरहिणी नायिका का एक पथिक के माध्यम से अपने खंभात प्रवासी नायक को सन्देश भेजना चाहती हैं। इसी सन्देश कथन में मन की विरहाकुल अवस्था के साथ ही ऋतुओं आदि का वर्णन किया गया है। अन्त में जब वह सन्देश देकर पथिक को विदा करती है, तो उसी समय उसे दक्षिण दिशा से नायक आता हुआ दिखाई देता है और सुखान्त दशा में कथा पूर्ण होती है। इसी कथा में विरहिणी नायिका पथिक से उसके नगर के विषय में जानना चाहती है कि वह कहाँ से आ रहा है। पथिक अपने गृहनगर का नाम 'साम्बपुर' बताता है और उसके भौतिक सांस्कृतिक तथा कलात्मक वैभव का वर्णन करता हुआ उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करता है। ‘साम्बपुर' में ऐसे वैविध्य भरे उद्यान हैं, जिन्हें देखकर सारा संसार भूल जाता है। उन उद्यानों में ढल्ल, कुन्द, सयवत्तिय (शतपत्रिका), रत्तबल (रक्तोत्पल), मालह (मालती) मालिय (मल्लिका), जूही, बालू (दालचीनी), चम्बा (चम्पा), बउल (बकुल), कवई (केतकी), कन्दुट्टम (नीलकमल) माउलिंग (मातुलिंग), मालूर, मायंद (मकरन्द), मुर, दक्ख (द्राक्षा) भंभ, ईओरव (अखरोट), आरू (अरबी), सियर (शतावरी), ताल, तमाल, तुबर (लौकी), संजिय (संजीवनी) आदि की भरमार है। इसीके साथ वहाँ पीपल, पाटला, पलाश, घनसार, बाँस, नारियल, नीम, बरगद, ढाक, आम, आमला, चन्दन, आभ्रातक, गूलर, महुआ, इमली, हरीतिली, मागबोटी, मँजीठ, मंदार, चिनार, शमी, देवदार, अशोक आदि के वृक्ष हैं। इतना ही नहीं वहाँ धतूरे, नीबू, इलायची, नारंगी८ आदि की भी भरमार है। सन्देशरासक के द्वितीय प्रक्रम के छन्द संख्या पचपन से बासठ तक यह सूची प्रस्तुत की गई है। इस ग्रन्थ की काव्यात्मक विशेषताओं का विश्लेषण करते समय इस वर्णन को 'नाम परिगणन शैली', का उदाहरण मानते हुए इस प्रकरण को विराम दे दिया जाता है। व्याख्याता कई बार इसे अनावश्यक भी बताते हैं, किन्तु बात इतनी सी ही या इतनी साधारण ही नहीं है। उस समय की नगर व्यवस्था के सविस्तार वर्णन की दृष्टि से प्रकृति रमा के इस चित्र का महत्त्व है। साम्बपुर के नागरिकों और तत्कालीन सत्ताधारियों की अभिरुचि के बिना दस योजन के क्षेत्र में शोभित इस वनस्पति का रोपण नहीं हो सका होगा। निश्चितरूप से इसके पालन-पोषण का दायित्व भी उन पुरवासियों ने वहन किया होगा और वे इसके अनावश्यक दोहन से बचे होंगे। पथिक के वर्णन से तो प्रतीत होता है कि साम्बपर के वासी अपनी इस प्रकृति सम्पदा पर रीझे हए थे। वह कहता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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