SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशोगाथा महापुरुष का जन्म : जन्म लेते ही जहां उत्तम वातावरण की प्राप्ति हो, वह है उत्तमकुल और जन्म लेते ही मलिन वातावरण की प्राप्ति हो, वह है हीनकुल। इसलिये भारतीय-महर्षियों ने उत्तमकुल के असीमित गुणगान किये हैं। आज भी हमारे मस्तिष्क में यह संस्कार दृढ है। इसलिये किसी महापुरुष की यशोगाथा सुनते ही हृदय में प्रश्न उठता है कि किस कुल को इस महात्मा ने पावन किया है? इस महापुरुष के माता-पिता बनने का सौभाग्य किसे प्राप्त हुआ था? इन प्रश्नों का जवाब देना भी उचित है। आज मैं जिस महात्मा की 'यशोगाथा' आलेखित करने के लिये तत्पर बना हूँ, इस भाग्यशाली बालका का नाम था 'लालचंद'। क्या यह नाम भी कुछ दिल लुभानेवाला महसूस नहीं होता है? धन्यभागी पिता का नाम था पीतांबर । जैन परंपरा में आचार्य का पीत वर्ण कल्पित है। आश्चर्य ! पिता ने भावी जैनाचार्य पुत्ररत्न के वर्णवाला वस्त्र पहले से ही ग्रहण कर लिया। जन्मदात्री का धन्य नाम था 'मोती'। मोती, तूं मोतीकुक्षी ही बनी। जिस गाँव की धूलि ने इस बालक के देह को मलिन करने की व्यर्थ चेष्टा की थी वह पुण्यनगर है 'बालशासन' (गुजरात का छोटा गाँव)। बालशासन ! तूं तो अब भी बालशासन ही रहा लेकिन तेरे दुलारे तो शासनप्रभावक बन गये। लालचंद का जन्म कुल था 'जैन'। इस कुलमें भक्ति, श्रद्धा और वैराग्य के संस्कार सहज होते हैं। आज भी महद् अंश में यह बात सत्य है। भावी महापुरुष बालक लालचंद का जन्म ऐसे निर्मल वातावरण में होना उचित ही था। अदभुतपरिवर्तन : माँ के उदर में आते ही यह मानवजीव उत्तरोत्तर वृद्धि करता हुआ उपस्थित संयोग के अनुकूल बनने की चेष्टा करता है, लेकिन महान् आत्माओं की यह विशेषता होती है कि वे केवल देह से नहीं, आत्मगुण से भी अभिवृद्ध होते जाते हैं। बालक लालचंद के विषय में भी वही बात थी। तीन साल की शिशुवय में भगवान् के समवसरण में अपने आपको पावनकारी वाणी पान करते देखा था। आबाल वय से ही भगवान् के मुखारविंद के भ्रमर बन चुके थे। यह अनुभव इतना गहरा था कि वृद्धावस्था में भी आपकी स्मृतिपथ पर बार-बार वह शिशुअवस्था का दृश्य उपस्थित हो जाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy