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________________ पाये। आशा है, आचार्यश्री के आशीर्वाद से आगामी वर्ष इस योजना को भी मूर्तरूप दिया जा सकेगा। हमारी पत्रिका 'श्रमण' के प्रचार-प्रसार में आपने अपना योगदान दिया है। इसके लिए भी हम आपके आभारी हैं। iii संस्थान में स्थायी रूप से फिलहाल कोई भोजनशाला नहीं चल रही है। इसके पीछे भोजनार्थियों की संख्या की कमी भी अन्यतम कारण है। संस्थान में पधारने पर आचार्यश्री को भोजनशाला की कमी महसूस हुई तथा उन्हें यह भी अनुभव हुआ कि शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलना इस क्षेत्र में सरल नहीं है । इस दृष्टि से आचार्यश्री की प्रेरणा से श्री निर्मलचन्द गांधी, वाराणसी ने १ लाख ५१ हजार रुपये की अनुदान राशि देकर भोजनशाला का जीर्णोद्धार कराया । आचार्यश्री का प्रयत्न है कि इस अनुदानराशि के अलावा प्रतिदिन की भोजन-व्यवस्था की दृष्टि से पर्याप्त धनराशि इकत्र हो जाये। इसलिये उन्होंने ११०१/- रुपये प्रतिदिन की अनुदान राशि निश्चित करा दी। आचार्यश्री कला के ममर्श हैं, जीवन्त प्रतीक हैं। उन्होंने जीर्णोद्धार ट्रस्ट, वाराणसी के माध्यम से पार्श्वनाथ विद्यापीठ में ही रंगोली प्रदर्शनी तथा चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन कराया। इसके निर्माता श्री रमणीक भाई (मुम्बई) रहे। चित्रकला प्रतियोगिता में लगभग १३०० छोटे-मोटे कलाकारों ने भाग लिया। इससे जैन संस्कृति का अद्भुत प्रचार-प्रसार हुआ। इसमें प्रतियोगियों को भली-भाँति पुरस्कृत भी किया। जिनमन्दिर की भव्य प्रतिष्ठा के अवसर पर ये दोनों आयोजन संस्थान की दृष्टि से भी बड़े महत्त्वपूर्ण रहे। कुल मिलाकर आचार्यश्री राजयश सूरीश्वरजी के इस वाराणसी चातुर्मास की फलश्रुति के विषय में जब हम सोचते हैं तो हमें यह अनुभव होता है कि वे वाराणसी में, विशेष रूप से पार्श्वनाथ विद्यापीठ में एक देवदूत बनकर आये हैं जिनकी पुनीत प्रेरणा से हमारे यहाँ का वातावरण आध्यात्मिक और शैक्षणिक दोनों का समन्वित रूप बन गया है। यदि आपका एक चातुर्मास और यहाँ हो जाये तो अवशिष्ट योजनाएँ भी पूर्ण हो जायेंगी। आप निरामय होकर शतायु हों यही हमारी शुभकामनाएँ हैं इस विनम्र निवेदन के साथ कि आगामी चातुर्मास आप हमारे पार्श्वनाथ विद्यापीठ में करें। यह अंक पू. स्व. आचार्यश्री लब्धिसूरि जी की पुनीत स्मृति में प्रस्तुत हो रहा है । आशा है, पाठक उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की एक झलक ले सकेंगे। Jain Education International प्रोफेसर भागचन्द्र जैन 'भास्कर' प्रधान सम्पादक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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