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________________ उगाए मनुष्य आता है और अपने सूरज को मार कर मर जाता है - यह कोई जीवनोपलब्धि नहीं, इन तमाम संभावनाओं के बाद भी बहुत कुछ उपलब्धियाँ और भी हैं। इन्हें ही आचार्य लब्धि सूरि रेखांकित करते हैं। आतम में ज्योत प्रगटी,जिनकी सकल स्वरूपी। रूपी भाव जग के जाने,जाने सभी अरूपी।। आत्म प्रकाश का यह कितना विलक्षण स्वरूप है जिसे लब्धि सूरि जी ने अपनी उपलब्धि की झोली में सहज ही कबीर की तरह डाल लिया है। एक सहज समाधि की तरह यह उपलब्धि मनुष्य की मानवेतर उपलब्धि है। ___ आतम में ज्योति प्रगटी, यही मनुष्य का अभ्युदय है यहीं से चरित्र में फूलों की गंध रमने लगती है इसी उत्स से कोई शिव सत्य बनकर सुन्दरता को रेखांकित करता है। रूपी और अरूपी, आकार और साकार, गुण और निर्गुण की सीमा रेखा, ये नयनीय अभिराम हर जाते हैं सारे प्रतिबंध टूट जाते हैं, द्वैत समाप्त हो जाता है और आत्मसात का एकाकार रूप सामने आ जाता है। स्तवन एवं वंदना के भक्ति गीतों में जिन तीर्थंकरों का जन्म, इतिहास, युग एवं कालावधि साहित्य वल्लरियों में इतिहास पुष्प की तरह गुम्फित है। उसमें उस युग के यशस्वी आचार विचार तो हैं ही आने वाली पीढ़ी को आत्म कल्याण के लिए प्रेरित करने वाले शब्द शक्ति हैं, शब्द गुण हैं। मोह तिमिगल छोर है, इसमें वरण सब प्राणी। . सबको इसने निगल लिए हैं फिर भी न उदर भराणी।। जल आश्रय छेक दूर करन को, संवर कील लगानी। निजरा वर्तन हाथ धरी ने बाहर निकालो पानी।। अध्यात्म का यह मूल मंत्र, प्रज्ञा की अतुल गहराई की यह सूक्ष्म अनुभूति कोई विरला ही समझ सकता है जैसे कबीर के शब्दों में काहे री नलिनी तू कुम्हलानि। जल में नलिनी तोर निवास। जल में उतपति, जल में विकास।। मोहपाश इस सकल मायावी भौतिक जगत् में अतल की छाया धूमिल धूमिल सी दिखाई पड़ती है इसीलिए यह माया रूपी मगर शनैः शनैः सबको ग्रस रहा है फिर भी काल का उदर नही भर रहा है इसलिए आत्म ज्ञान की कील ही लोगों को उबारने में सक्षम है। निर्जरा बर्तन हाथ धरीने, धर्म एक ऐसा पात्र है जो निर्जरा है, सत्य है, शाश्वत है, अविनाशी है जरा से मुक्त निर्जरा है उसी से यह माया जल उलीचा जा सकता है। अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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