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३८ मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्। कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च।। तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।
(गीता १०/९-१०) । आचार्यश्री लब्धि सरि द्वारा रचित श्री महावीर स्वामी पालना स्तवन हमें हिन्दी के यशस्वी संत कवि सूर के पदों की याद दिला जाता है। संत हृदय के भावों का तादात्म सदा एक चिरन्तन सत्य की व्याख्या करता है, काल गति और सीमा के दायरे में शब्दों और भावों के माध्यम से बार-बार अनुनादित होता है। सूर एवं लब्धि सूरि के पदों की सन्निकटता देखिए
रत्न कनक मय पारणु सोहे मंगल गावे सब देव दवैयां। मोर मैना और पुतली जिणंदा गीत गावत तिन्हा किन्नर गवैया।।
त्रण धामके धारी जिनवर,जग माया में नाहि नचैया।। कर कृपा दास पर, दुःख दुःख बाधा नाश कर।
सुख दिया मोक्षनूं मैं अधाD।। कमल गुंज आत्मा, बोल परमात्मा
सकल लब्धि भावे हूँ जानूँ।। आत्मा का अरविंद ईश्वरीय अनुग्रह और उसकी कृपा के फल पर ही । खिलता है। सन्त हृदय जन-जीवन की आत्मा के अरविंद को खिलाने के लिए सतत् प्रयासशील रहता है। मोह-माया की तमसा आवृत्ति तथा दुखावर्तन उसी की कृपा से दूर होते हैं। तभी परम सुख की, मोक्ष की प्राप्ति होती है। सकल मुज आतमा, बोल परमात्मा, सकल लब्धि भावे हूं जायूँ
x x x x x x तरले भवसागर प्राणी, ये है बहुत दुःखों की खानि। जनम जरा और मरण वियोग, शोक भरा है पानी।
धरम जहाज है इसमें सुन्दर वायु वेग जिन वाणी।।
उपमा और रूपक की छटा इस पद में देखते ही बनती है। धर्म का नौकायान है। वह नौका भी तब तक स्थिर है जब तक वायु का संघात उसे प्राप्त नहीं है। जिन वाणी ही वह प्रेरणा स्त्रोत है, गति स्त्रोत है, सद्गति स्त्रोत है जो हमारी धर्म नौका को आगे बढ़ाने में सहायक है। जिन वाणी ही हमें सद्गति की ओर उन्मुख करता है। जन्म, जरा और मृत्यु से आवेष्टित इस संसार में केवल करुणा की जाह्वी है हर आँखों में दुःख की सजल घटाएँ हैं, आँसू है, पानी है - यहाँ से जन्म जरा और मृत्यु के दरवाजे खोलता हुआ मनुष्य शोक और वियोग के महाअंधकार में विलुप्त हो जाता है। हथेली पर अस्तित्व का सूरज
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