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________________ ४० अरिहंत सिद्ध सुरि पाठक मुनिवर धार। दर्शन सुखदायी ज्ञान चरण तप सार। ये नवपद ध्याते कोटि भव दुःख वार।अध्यात्म भरीये निज आतम भंडार।। अपनी आत्मा के भंडार में भौतिक सुखों के आयामों का संग्रह मत कीजिए। मोती, माणिक, पन्ना, हीरे और जवाहरात से भी ज्यादा प्रकाशवान नक्षत्र है "आत्मा''। अपनी आत्मा के भंडार में सम्यक ज्ञान का कोष भरिये- यही मानवीय तप का सार तत्व है। अध्यात्म के इसी कोष से यह जीवन कोष भवों से पार उतर सकता है। आत्म कमल में ज्ञान ने, आपे जिनवर देव, लब्धि सूरि समकित लेह चारित्र नित्य मेव। देह के अक्षर आज नहीं तो कल समय की शिला पर से मिट जाएंगे केवल यश की यशस्विता अक्षय बनकर कालातीत होजाएगी, धर्म बनकर आरूढ़ रहेगी। आत्मा की उपलब्धि परमात्मा की हो जायेगी। एक पूरी समवेत यात्रा का विराम हो जावेगा। केवल शाश्वत रहेगा वह पड़ाव जिसके लिए उस यात्री ने यात्रा की थी। अंग्रेजी महान कवि राबर्ट लुइस स्टीफेन्शन के शब्दों में . . केवल रह जाता है चरित्र और चरित्र का यश। यही मानवीय यात्रा का शेष अशेष इतिहास होता है यूं तो समग्र संसार सुन्दर दिखाई पड़ता है लेकिन हमें यहाँ रमना नहीं है सोने से पहले हमें जागरण के गीत दे जाना है अमेरिका के मूर्धन्य कवि राबर्ट फास्ट के शब्दों में - ___ मुझे एक लम्बी यात्रा तय करनी है निद्रा से पहले। अत: आत्मानुरागी निद्रा से पूर्व सचेत हो जाएं। एक दिन यह प्रकाश महासूर्य से संधि निश्चय ही कर लेगा लेकिन इसके पूर्व इन्हीं भावभूमि को प्रस्तुत करते हुए लब्धि सूरि जी कहते हैं - फिर ज्योति से ज्योति मिलाना। सिद्ध गिरि ज्यूं आप विराजो। ___ दर्शन करी मुक्ति बरी। आत्म कमल में लब्धि मिलाना।। लब्धि सूरि जी की लेखनी की यह उदारता है यही वो चरम बिन्दु है यही लेखनी का निर्वाण है कि आत्म कमल खिले। सोए हुए मानव के अंदर जो आत्मा का अरविंद है वहाँ प्रकाश की किरणें उतरें पंखुरियों में कसमसाहट हो - नव प्रस्फुटन हो आत्मा का सौरभ दिग् दिगन्त तक बिखरे, प्रसरित हो। पीड़ित मानवता महावीर के पथ का अनुगमन करे, समस्त मानव जाति मानवीय इतिहास के नव लेखन में अपनी आत्मा के बंद दरवाजे खोले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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