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________________ साधना, ज्ञानार्जन एवं लोक सेवा से पूर्ण जीवन डॉ० के० सी० जैन पू.आचार्य श्री लब्धि सूरीश्वर जी की साधना एवं ज्ञानार्जन लोक सेवा से परिपूर्ण रहा और इसी अवस्था में उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्विम तक सारे भारत वर्ष में धर्म के प्रसार से देश को एक सांस्कृतिक सूत्र में बांधा। शांति, अहिंसा एवं धार्मिक सद्भावना के प्रयासों एवं गुणानुराग को निष्ठापूर्वक स्थापित करने के लिये समर्पित रहे। अपनी संयम, साधना एवं आराधना के बल पर असीमित शक्ति प्राप्त कर इस योगी महापुरुष ने अपने अनुयायियों को जीवन बल प्रदान किया। श्री हीराचंद जी चोपड़ा के सुपुत्र के अपाहिज पैरों ने गुरुदेव भगवंत के फोटो से गिरे वासक्षेप से नवजीवन पाया। ग्यारह वर्ष बाद वह पुनः चल पड़ा। डॉ० प्रफुल्ल जैन का बार-बार सर दर्द होते शोध-प्रबंध का गुरु श्री की कृपा से पूर्ण होना। डॉ० कल्ले कहते हैं “ मैं शल्य चिकित्सक हूँ, प्रारंभ में मेरे हर आपरेशन फेल हुए। मैं निराश हो चुका था कि एक दिन भाई श्री रावलमल जी जैन 'मणि' से मुलाकात हुई जिनके नेतृत्व में भव्य जिन भुक्ति महोत्सव आयोजित हुआ था। मणि जी से परिचय हुआ। अपनी व्यथा बताई, विचारों का आदान-प्रदान हुआ। इनके निर्देशन का पालन किया। फिर एक दिन साहस के साथ पुन: आपरेशन टेबल पर जटिल आपरेशन का प्रारंभ “ ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं श्रीमद्लब्धिसूरि गुरुभ्यो नमः " स्मरण के साथ किया और पहली बार सफल रहा फिर तो मेरा यह क्रम ही बन गया।" डॉ० कल्ले जो एक ख्यातनाम शल्य चिकित्सक हैं ने भी एक विशेष स्थिति निर्माण के अवसर पर सूरिदेव की कृपावंता प्राप्त की। ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो मेरे अपने अनुभव में आए। पू. सूरिदेव के जीवन चरित्र का मैंने यथासमय अध्ययन किया और उनके जीवन की सार्थकता का सम्मानीय परिचय मिला। पू गुरुदेव का अन्त:करण त्याग, संयम और अपरिग्रह जैसे गुणों की साधना से निर्मल और पवित्र हो चुका है। चिन्तन में उत्कृष्टता और आचरण में आदर्शवादिता से वे ओतप्रोत थे। गुरु की निष्काम सेवा के साथ अंतराल में श्रद्धा, मस्तिष्क में प्रज्ञा और आचरण में निष्ठा का समावेश उनका जीवन था। पूज्य श्री गुण के समुद्र थे कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि परोपकारिता को ही इस तरह उन्होंने प्रवाहित किया था मानो उसी के लिये उन्होंने जन्म लिया हो। पूज्य श्री का सम्पूर्ण जीवन दर्शन युग संधि का प्रभात पर्व सा प्रतीत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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