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रागों में गुम्फित ये स्तवन वीतरागी हैं इनमें वैराग्य का दर्शन है और ब्रम्हानंद सहोदर संगीत की मधुरिम पग ध्वनि। इन पदों की आत्मा के तल में एक विमल प्रकाश से आभासित समग्र संसार एक ऐसे अवर्णनीय दर्शन की कथ्य भूमि को सहज ही देख सकता है। सूरि जी के गीतों में शाश्वत भारतीय वाङ्मय के आदर्श एवं अनादि भाव हैं।
श्रमण संस्कृति के अमर गायक श्री लब्धिसूरि ने सोये हुए मानव के अंदर जो आत्मा का अरविंद है उसे जगाया है और बिखेरी है प्रकाश की तेजस्विता । उस महान् युग पुरुष को शत्-शत् वंदन ।
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