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________________ अच्छा होगा और ८-१२ बचे तो सिद्ध नहीं होगा, ऐसा जानना चाहिए। अत: विपरीत होने से सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। विपरीत मन्त्र को अनुकूल करने के लिए (जो मन्त्र धनात्मक हो) मन्त्र के आदि में- 'ह्रीं, श्री, क्लीं' इनमें से एक कोई बीजाक्षर ले आवें, तब वे सब दोष मिट जाते हैं। वह सिद्धि हो सकता है। साधक को यह भी ध्यान रखना होता है कि उच्चाटन-विद्वेषण आदि क्रूर स्वभावी मन्त्रों के अन्त में 'नमः' जोड़ देने से वह मन्त्र शान्त स्वभावी हो जाता है और यदि शान्ति-पुष्टि कारक शान्त स्वभावी मन्त्र के अन्त में 'फट' पल्लव लगा दिया जाय तो वह क्रूर स्वभावी हो जाता है। उपदेश पुस्तक में मन्त्र लिखा है, तो भी मन्त्र विधि जानने वाले गुरु से अवश्य पूछ लेना चाहिए; जिससे कि सन्देह न रहे। यह उपदेश है। मन्त्र छपने में या लिखने में कई तरह की अशुद्धियाँ हो जाती हैं, शुद्ध लिखा होने पर कभी-कभी शुद्ध उच्चारण नहीं हो पाता है। ऐसे में की गई साधना का परिणाम निरर्थक या भयावह हो सकता है। देवता शुद्ध सम्यग्दृष्टि २४ तीर्थङ्करों में से किसी का भी जप करें तो उनके सेवक यक्ष या यक्षिणी उस साधक की मनोवांछित सिद्धि में सहायक होते हैं। २४ तीर्थङ्करों के जो सेवक हैं, उनका तख्ता इनके साथ है। ये यक्ष और यक्षिणी जिनमत की सेवा करते हैं। रोहिणी आदि विद्या देवताओं के प्रभाव से विद्याधर मनुष्य होकर भी देवों के समान सुख भोगते हैं। (आ० महा०स्मृ० ग्रन्थ, पृष्ठ १४८)। सकलीकरण मन्त्र साधने के पहले सकलीकरण क्रिया अवश्य करनी चाहिए। विद्यासाधन करने के इच्छुक को इष्टकार्य की निर्विघ्न सिद्धि के लिए अपनी रक्षा करने को सकलीकरण क्रिया कहते हैं। रक्षामन्त्र से मन्त्रित बैठने के स्थान के चारों ओर से सरसों की रेखा खींची जाती है, जिससे इसके अन्दर किसी व्यन्तरादि का प्रवेश नहीं हो पाता। फिर मण्डल विधान के समय का सामान्य सकलीकरण करके निम्नलिखित मन्त्र से सभी दिशा द्वारों को बाँधा जाता है "ॐ नमो भगवति पद्मावति अक्षिकुक्षिमंडिनी उत वासिनी आत्मरक्षा, पररक्षा, पिशाचरक्षा शाकिनीरक्षा चौररक्षा पूर्वद्वारं बंधामि य ॐ ठः ठः स्वाहा।" यह मन्त्र पढ़कर पूर्व परिधि द्वार (दिशा) में पीला सरसों क्षेपित किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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