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________________ ७४ 'प्रायोपवेशन' की निरुक्ति : ततः कालात्यये धीमान् श्रीप्रभाद्रौ समुन्नते। प्रायोपवेशनं कृत्वा शरीराहारमत्यजत्।। रत्नत्रयमयीं शय्यामधिशय्य तपोनिधिः। प्रायेणोपविशत्यस्मिन्नित्यन्वर्थमापिपत् ।। प्रायेणोपगमो यस्मिन् रत्नत्रितयगोचरः। प्रायेणोपगमो यस्मिन् दुरितारिकदम्बकान्।। प्रायेणास्माज्जनस्थानादपसृत्य गमोऽटवेः। प्रायोपगमनं तज्ज्ञैर्निरुक्तं श्रमणोत्तमैः।। (पर्व ११, श्लोक संख्या ९४-९७) अर्थात, आयु के अन्त में बुद्धिमान् वज्रनाभि ने श्रीप्रभ नामक ऊँचे पर्वत पर प्रायोपवेशन धारण कर शरीर और आहार का ममत्व त्याग दिया। चूँकि इस संन्यास में तपस्वी साधु रत्नत्रय की शय्या पर उपविष्ट होता है, इसलिए इसका 'प्रायोपवेशन' नाम सार्थक है। इस संन्यास में प्रायः रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र) की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे 'प्रायेणोपगम' भी कहते हैं। अथवा इस संन्यास के धारण करने पर प्राय: कर्मरूपी शत्रुओं का अपगम या विनाश हो जाता है, इसलिए इसे 'प्रायेणापगम' भी कहते हैं। इस संन्यास में प्राय: संसारी जीवों के रहने योग्य ग्राम, नगर आदि से अलग होकर वन में जाकर रहना पड़ता है, इसके विशेषज्ञ श्रमण मुनियों ने इसे 'प्रायोपगमन' कहा है। 'वामोरु' की निरुक्ति : वामोरुरिति या रूढिस्तां स्वसात् कर्तुमन्यथा। वामवृत्ती कृतावूरु मन्येऽन्यस्त्रीजयेऽमुया।। (पर्व १२, श्लोक संख्या २७) अर्थात्, महाकवि कहते हैं- 'मैं ऐसा मानता हूँ कि अभी तक संसार में मनोहर ऊरुवाली स्त्रियों के अर्थ में 'वामोरु' शब्द रूढ़ है। उसे मरुदेवी ने अन्य प्रकार से आत्मसात् कर लिया था। उन्होंने अपने दोनों ऊरुओं को अन्य स्त्रियों को पराजित करने के लिए वामवृत्ति वाला, शत्रुवत् आचरण करने वाला बना लिया था।' कोश के अनुसार 'वाम' शब्द का अर्थ सुन्दर भी होता है और दुष्ट या शत्रु भी। मरुदेवी ने, जो सुन्दर ऊरुवाली स्त्री थी, अपने उन ऊरुओं से अन्य स्त्रियों के ऊरुओं की सुन्दरता को मात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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