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________________ vii संस्कृति संशोधन मण्डल की स्थापना की। इन दोनों संस्थाओं से अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। संशोधन मण्डल का तो अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ में विलय हो गया है, परन्तु प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, अहमदाबाद में अब भी कार्यरत है। लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर का जैन विद्या के अध्ययन, संशोधन, प्रकाशन आदि के क्षेत्र में आज जो गौरवशाली स्थान है उसके मूल में पण्डित दलसुखभाई का अविस्मरणीय योगदान है। पण्डित जी ने न केवल भारत अपितु विदेशों में भी अध्यापन कार्य किया। सन् १९६६-६७ में उन्हें एक वर्ष के लिये टोरन्टो विश्वविद्यालय, कनाडा में भारतीय दर्शन के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। पं० दलसुखभाई की उल्लेखनीय साहित्य सेवा के उपलक्ष्य में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सर्टीफिकेट ऑफ ऑनर एवं भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की स्थापना के समय से ही आप इससे जुड़े रहे और इसे समय-समय पर अपनी निःस्वार्थ सेवायें उपलब्ध कराते रहे। प्रो०सागरमल जैन को संस्थान के निदेशक पद पर लाने में इन्हीं का सहयोग रहा है। प्रो० जैन के नेतृत्त्व में विद्यापीठ ने जो प्रगति की, वह सर्वविदित है। अपने जीवन के अन्तिम समय में आप गम्भीर रूप से अस्वस्थ रहे। पिछले नवम्बर मास में अहमदाबाद में जब प्रो० सागरमल जी आपसे मिले तो आपने हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की। यह भी एक संयोग ही रहा कि जब विद्यापीठ में आपके निधन का समाचार मिला, तब प्रो० सागरमल जी यहीं वाराणसी में ही थे। पूज्य पण्डित जी के निधन से जैन विद्या के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार अपने इस सच्चे एवं निःस्वार्थ मार्गदर्शक के निधन पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धाञ्जलिस्वरूप श्रमण का यह अंक समर्पित करता है। विभित्र अपरिहार्य कारणों से श्रमण के दो अंक हम समय पर नहीं प्रकाशित कर सके, जिसका हमें हार्दिक खेद है। अब आपके हाथों में उसका संयुक्तांक पहुँच रहा है। आशा है, इसमें प्रकाशित विभिन्न शोध-आलेख आपको पसन्द आयें। इस अवसर पर विद्वानों से हमारा अनुरोध है कि वे अपने उच्च कोटि के अप्रकाशित लेख भेजकर हमें कृतार्थ करें। शिव प्रसाद सम्पादक भागचन्द्र जैन 'भास्कर' प्रधान सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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