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________________ से जैन संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर ‘राजयश' नाम को चरितार्थ किया। गुजरात की पावन गोद में पले-पुसे आपश्री समस्त जैन समाज की ही नहीं अपितु राष्ट्र की एक महान् विभूति हैं। अहर्निश ज्ञान-ध्यान, साधना में जुटे आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी साहित्य का प्रगाढ़ अध्ययन सृजन कर स्वानुभूति के शीतल निझर में सांसारिक तपन को प्रशान्त किया और संसारियों को नैतिकता की ओर मोड़ने का प्रशस्त आयास किया है। इसलिए हम आपका अभिनन्दन करते हैं। ___चार तीर्थङ्करों के जन्मकल्याणक वाली इस वाराणसी महानगरी में आपके शुभागमन ने एक नया अध्याय जोड़ा है। आपकी गरिमामय उपस्थिति से ही यहाँ का समाज समन्वयवाद की मधुर धारा में प्रवाहित होता दिखायी दे रहा है। आपके मधुर स्वभाव का ही यह प्रतिफल है कि सारा समाज एक स्वर से आपको अपना मानकर आपके गुणों का अभिनन्दन-अभिवन्दन कर रहा है। जैन समाज आज जिस टूटे-बिखरे कगार पर खड़ा है उससे उबारने का दृढ़ संकल्प लिये अपने जिस समन्वयवादी विचारधारा का पोषण किया है वह निःसन्देह प्रशंसनीय है। दिगम्बर-श्वेताम्बर सम्प्रदायों के बीच उभरे हुए मनोमालिन्य को दूर कर सहृदयता, सहजता, वात्सल्यता और भ्रातृत्वभाव को प्रस्थापित करने में आपकी एक सही अनेकान्तवादी आचार्य की भूमिका रही है। निष्पक्ष होकर विकारों को शान्तिपूर्वक निपटाने की आपकी मनोभूमिका में दोनों समाजों को जो बल दिया है वह आधुनिकयुगीन जैन इतिहास की एक विशिष्ट धरोहर है। हमारी समग्र तरुण पीढ़ी भी इस धरोहर को यदि सम्हाल कर रखना सीख ले तो निश्चित ही भावात्मक एकता के सूत्र जुड़ेंगे और सकल जैन समाज पारस्परिक स्नेहित भाव से अनुप्राणित हो जायेगा। आप एक ओजस्वी प्रवचनकार एवं कुशल साहित्यस्रष्टा हैं। स्वानुभूति के आधार पर वीतरागता का उपदेश देकर आप मन्त्रमुग्ध सा कर देते हैं। आपके भक्ति रस के प्रवाह से आध्यात्मिकता और भी प्रगाढ़ हो रही है। इस अध्यात्म और भक्ति की प्रबल धारा आपके अरिहन्तसिद्ध पद विवेचक, सम्यक् दृष्टि की साधना, जैनधर्म की रूपरेखा, भक्तामर दर्श, अभिनव महाभारत, विक्रम आन्तर वैभव, मुनि सुव्रत, पञ्चकल्याणक पूजा आदि हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी भाषा के ग्रन्थों में प्रवाहित होती हुई दिखायी देती है। ये ग्रन्थ आपकी कुशल साहित्य-सर्जना और अगाध विद्वत्ता के निदर्शन हैं। इतना ही नहीं, आप एक कुशल प्रभावक आशु कवि भी हैं। आपकी कविताएँ मानवतावाद से आप्लावित और जैन सिद्धान्तों से परिपूर्ण हैं। एक ओर आपने मुमुक्षुओं को अपना अनुगामी बनाकर वीतराग पथ पर चलने का पाथेय दिया है तो दूसरी ओर नवीन जैन मन्दिरों का निर्माण कर समाज को साधना की ओर मोडा है। साथ ही प्राचीन जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार कर आपने जिनशासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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