________________
सम्पादकीय
पूज्य आचार्यश्री राजयशसूरीश्वर जी महाराज का चातुर्मास
सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक क्षेत्र वर्षावास मनाता आ रहा है। वर्षाकाल का यह चातुर्मास साधु-सन्तों और उनके उपासकों के लिए साधना की दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इसका प्रारम्भ भी जैन धर्म से ही हुआ है जिसका अनुकरण उत्तरकाल में बौद्ध और वैदिक धर्मों ने किया है। . इस वर्ष हमारे जैन समाज का यह अहोभाग्य है कि प०पू० आचार्यश्री राजयशसूरीश्वर जी महाराज ससंघ वाराणसी पधारे हुए हैं। उनके ही कर कमलों से वाराणसी में नवनिर्मित पार्श्वनाथ जैन मन्दिर की पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा नवम्बर माह में होने जा रही है। उनका यह चातुर्मास समग्र जैन समाज के लिए उत्साहवर्धक और एकताकारक होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
भारत की प्राचीनतम सांस्कृतिक नगरी वाराणसी के समस्त जैन समाज का ही नहीं वरन् सभी काशीवासियों का यह परमसौभाग्य है कि हमें आप जैसे षड्दर्शनभिज्ञ, समन्वयवादी, राष्ट्रसन्त का चैत्र वदी दशमी, दिनांक २९ अप्रैल २००० को ५६वाँ जन्मदिवस मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपकी निश्छलता, निष्कामता विदग्धवाग्मिता और प्रगल्म चिन्तनवृत्ति अनेकान्तिक विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए एक प्रभावक महापथ का निर्माण करती है, जिस पर अग्रसर होकर मानवता की प्रतिष्ठा की जा सकती है। मानवता ही धर्म है और वही जैन धर्म है। आपश्री जैनधर्म के वरिष्ठ आचार्य हैं और आपका अभिनन्दन कर हम सभी अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं।
गुजरात का नडियाड नगर आज से ५६ वर्ष पूर्व इस दिन परम-पावन हुआ था, जब वहाँ आप जैसे आध्यात्मिक सन्त का अवतरण हुआ और भारत-धरा सही अर्थ में वसुन्धरा हुई। बाल्यावस्था की सरस कल्लोलों में विचरण करते हुए आपने आदर्श परिवार के सुसंस्कारों के बीच अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया और जैनधर्म के वीतरागमयी महापथ के पथिक बने। महापथ की इस यात्रा में रत्नत्रयी ही आपका पाथेय रहा है।
महासंवेगी लब्धिसूरि की ज्ञान किरणों से द्योतित विक्रमसूरि जैसे साधक की गुरुतर छाया पाकर आपने स्वयं को यथार्थ शिष्य सिद्ध किया और अपनी विलक्षण प्रतिभा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org