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________________ सम्यक्त्व पच्चीसी श्रीमती डॉ० मुन्नी पुष्पा पाण्डुलिपि और उसका विषय परिचय पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में संग्रहीत अनेक अप्रकाशित प्राचीन हस्तलिखित लघु पाण्डुलिपियों में से मेरे द्वारा सम्पादित पुरानी हिन्दी के ४ लघु ग्रन्थों का प्रकाशन यहाँ की शोध पत्रिका 'श्रमण' के पिछले अंकों में हुआ है जिनमें अणगार वन्दना (जनवरी-मार्च १९९७), पञ्चेन्द्रिय संवाद (जुलाई-सितम्बर १९९७), मुनिराज वन्दना बत्तीसी (जनवरी-मार्च १९९८) एवं जोगरत्नसार जनवरी-मार्च १९९९ ई० हैं । इसी शृङ्खला में प्राकृतभाषा में रचित 'सम्यक्त्वपच्चीसी की हस्तलिखित पाण्डुलिपि का सर्वप्रथम सम्पादन और अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है । Jain Education International जैन प्रस्तुत लघुग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय सम्यक्त्व अर्थात् सम्यग्दर्शन है, जिसका विवेचन प्राकृत भाषा की इन पच्चीस गाथाओं में निबद्ध है। प्रायः प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में नियत संख्या के अनुरूप किसी एक विषय की पद्यरूप में विवेचन करने की प्राचीन परम्परा अष्टक, पच्चीसी, बत्तीसी, शतक आदि रूप में रही है। प्राचीन रचनाकारों, कवियों आदि ने इष्टदेव की स्तुति, वन्दना, स्तोत्र के साथ-साथ जैनधर्म के विशेष सिद्धान्तों एवं दर्शन को समझने वाले तत्त्वों को भी सुरुचिपूर्वक सारसंक्षेप में काव्यबद्ध किया, ताकि जनसाधारण (श्रावक-श्राविकाएँ) अभीष्ट विषय को सहज रूप में ग्रहण कर सकें और श्रद्धालु उसका नित्य पाठ कर कण्ठस्थ भी कर सकें। पाण्डुलिपि परिचय ४ यह पाण्डुलिपि पार्श्वनाथ विद्यापीठ के ग्रन्थालय में संगृहीत है और मात्र दो पत्रों (चार पृष्ठों) में पूर्ण है। पत्र की लम्बाई १० इंच चौड़ाई ४. / इंच है। दोनों ओर लगभग १.१, इंच हाशिया है। हाशिये पर 'सम्यक्त्व पच्चीसी सा० प्रकरण' नाम लिखा है । प्रत्येक पत्र के दोनों तरफ सात-सात पंक्तियाँ हैं, जिनमें लगातार गाथायें लिखी गई हैं तथा गाथा की समाप्ति पर उनका क्रमांक (नं०) अंकों में लिखा गया है । अन्तिम *. अनेकान्त भवनम, शारदा नगर कालोनी, वाराणसी. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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