SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ कल्पसूत्र एवं पर्युषण पर्व पर दिये गये प्रवचनों का संग्रह है। पर्युषण के अवसर पर कल्पसूत्र का पारम्परिक रूप से पारायण किया जाता है। मुनिश्री ने इसे नया आयाम देते हुए समय सापेक्ष बना दिया है। इस पुस्तक की लोकप्रियता का सहज ही प्रमाण है इसका १ वर्ष में ही दूसरी बार पुनर्मुद्रण होना। पुस्तक की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक व मुद्रण सुस्पष्ट है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन को अल्पमूल्य में उपलब्ध कराने हेतु प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। चिन्तन प्रवाह : सेवा से श्रेयस की ओर लेखक- श्री जमनालाल जैन; प्रकाशक- श्री मूलचन्द बड़जाते, अध्यक्ष- अनेकान्त स्वाध्याय मन्दिर, रामनगर, वर्धा-४४२००१, महाराष्ट्र; प्रथम संस्करण- १९९९ ई०, पृष्ठ २५६, आकार-- डिमाई, मूल्य ७५/- रुपये मात्र। प्रस्तुत पुस्तक प्रबुद्ध चिन्तक और सुप्रसिद्ध गांधीवादी विचारक श्री जमनालाल जैन के कतिपय मौलिक लेखों का संकलन है जो उनके ७५वें जन्मदिवस पर उनके आत्मीय मित्रजनों द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहयोग से प्रकाशित कराया गया है। पुस्तक ६ खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड- 'मानवता के मन्दराचल महावीर' में कुल ६ लेख हैं। इनमें विद्वान् लेखन ने महावीर के सम्बन्ध में अपने मौलिक विचार रखे हैं। द्वितीय खण्ड ‘सत्य-अहिंसा और परिग्रह' को समर्पित है। इसमें १० लेखों को स्थान दिया गया है। तृतीय खण्ड 'श्रावक-साधक' को समर्पित है। इसमें कुल ७ लेख हैं। चतुर्थ खण्ड 'साहित्य व समाज' में भी ७ लेख हैं। पञ्चम खण्ड 'चिन्तन की पगडंडियां' में १९ लेख और 'अपने घर में' नामक षष्टम् खण्ड में १० लेखों का संकलन है। इस खण्ड के ४ लेख जमनालाल जी के तथा शेष ६ लेख उनकी पुत्रियों एवं अन्य आत्मीयजनों के हैं। प्रत्येक लेख अपने आपमें मौलिक एवं क्रांतिकारी विचारों से ओत-प्रोत है। पुस्तक के अन्त में लेखक की साहित्य सेवा का भी विस्तृत परिचय दिया गया है। चूंकि ये सभी लेख विगत ५० वर्षों में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हए हैं और अब वे अप्राप्य से हो गये हैं अत: ऐसी स्थिति में उनके लेखों का एक स्थान पर प्रकाशित होना अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। इससे अधिकाधिक लोगों में क्रान्तिकारी लेखक के विचारों का प्रचार-प्रसार होगा, इसमें सन्देह नहीं। ऐसे सुन्दर प्रकाशन के लिये प्रकाशक संस्था और उससे जुड़े विद्वान् बधाई के पात्र हैं। छन्दशतक रचनाकार- कविवर वृन्दावनदास; सम्पादक- श्री जमनालाल जैन, प्रकाशक- अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्रिपरिषद् २६१/३, पटेल नगर, मुजफ्फरनगर, उ०प्र०, द्वितीय संशोधित संस्करण, वीर निर्वाण सम्वत २५२५, आकार- डिमाई, पृष्ठ ५५, मूल्य १०/- रुपये मात्र। विक्रम सम्वत् की १९वीं शताब्दी के मध्य में हुए कविवर वृन्दावनदास जी चौबीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy