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________________ २०५ प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन जैन ग्रन्थों में उल्लिखित श्रमण जीवन में आवश्यक क्रियाओं का संकलन कर उनका गुर्जरानुवाद दिया गया है। प्रथम विभाग में साधु-साध्वी योग्य क्रियासत्रों के अन्तर्गत पंचपरमेष्ठी नमस्कार महामन्त्र, सामायिकसूत्र, दैवसिक अतिचार, रात्रिक अतिचार, पाक्षिक अतिचार, साधु-प्रतिक्रमण, पाक्षिकसूत्र, पाक्षिक खामणा आदि का २०० पृष्ठों में विस्तृत विवेचन है। द्वितीय विभाग में ३ परिशिष्ट दिये गये हैं जिनके अन्तर्गत विभिन्न नियमों, उपनियमों आदि का विस्तृत विवेचन है। एक श्रमण की दिनचर्या कितनी दुष्कर होती है, यह बात इस पुस्तक के अवलोकन से भली-भाँति स्पष्ट हो जाती है। अल्पावधि में ही इस पुस्तक का तीसरी बार प्रकाशन होना इसकी लोकप्रियता का ज्वलन्त प्रमाण है। भद्रोदयमहाकाव्य अपरनाम समुद्रदत्तचरित रचनाकार- महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज; सम्पादक- डॉ० रमेशचन्द्र जैन एवं श्री निहालचन्द्र जैन; अंग्रेजी अनुवादक- डॉ० राजहंस गुप्त, प्रकाशक- आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, व्यावर एवं भगवान् ऋषभदेव ग्रन्थमाला, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, मन्दिर संघी जी, सांगानेर, जयपुर; प्रथम संस्करण-१९९९ ई०, आकार-डिमाई, पक्की बाइंडिंग, पृष्ठ ४+३१+११४; मूल्य- १००/- रुपये। बीसवीं शती में जैन धर्म के महान् प्रभावक आचार्यों में स्व० आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का नाम अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है। उनके द्वारा संस्कृत और हिन्दी भाषा में रचे गये ग्रन्थों से आज सम्पूर्ण विद्वद्जगत् भली-भाँति सुपरिचित है। प्रस्तुत कृति भद्रोदयमहाकाव्य अपरनाम समुद्रदत्तचरित उनके द्वारा रचित एक लघु कृति है जिसमें ९ सर्ग और ३४५ श्लोक हैं। रचना के अन्त में रचनाकार द्वारा ४ श्लोकों की प्रशस्ति भी दी गयी है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रत्येक श्लोक के साथ उसका आंग्लानुवाद भी दिया गया है। पुस्तक के प्रारम्भ में २० पृष्ठों में विद्वान् सम्पादकद्वय ने आचार्यश्री की प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त किन्तु महत्त्वपूर्ण विवरण दिया है, जो अत्यन्त उपयोगी है। चूंकि यह ग्रन्थ आंग्लानुवाद के साथ प्रकाशित हुआ है अत: इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यह कृति प्रत्येक पुस्तकालय के लिये संग्रहणीय और विद्वद्जनों के लिये पठनीय है। ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के सम्पादन, आंग्लानुवाद एवं प्रकाशन के लिये सम्पादक, अनुवादक एवं प्रकाशक सभी बधाई के पात्र हैं। पर्युषणप्रवचन, प्रवचनकार- मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर; प्रकाशक- जितयशा फाउन्डेशन, ९सी, एस्प्लानेड ईस्ट, कलकत्ता ७०००६९; द्वितीय संस्करण१९९७ ई०, पृष्ठ ४+१०७; आकार- डिमाई; मूल्य १७/- रुपये मात्र। अगम को सुगम और कठिन को सहज बनाने की कला वस्तुत: प्रशंसनीय होती है। मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर जी इस कला में सिद्धहस्त हैं। प्रस्तुत पुस्तक मुनिश्री द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only For www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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