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________________ जैन ज्ञानमीमांसा - एक अवलोकन डॉ० विजय कुमार सामान्य रूप से किसी वस्तु की अभिव्यक्ति को ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान अपने विषयों को ठीक उसी प्रकार प्रकाशित करता है जिस प्रकार दीपक का प्रकाश वस्तुओं को प्रकाशित करता है। जैन मान्यतानुसार ज्ञान जीव या आत्मा का लक्षण है। वह निसर्गत: अनन्त ज्ञानविशिष्ट है, किन्तु कर्मों के आवरण से उसका विशुद्ध चैतन्य रूप ढका रहता है, जो सम्यक्-चारित्र पालन से पुन: अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। आयारो में कहा गया है-जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया।' अर्थात् जो आत्मा है, वह जानता है और जो जानता है, वह आत्मा है। ज्ञान और आत्मा में भिन्नाभित्र सम्बन्ध है। २ ज्ञान आत्मा ही है इसलिए वह आत्मा से अभित्र है। ज्ञान गुण है तथा आत्मा गुणी है, अत: गुण और गुणी के रूप में यह भिन्न है। व्यवहार में ज्ञान के लिए कई पर्यायवाची शब्द आते हैं, जैसे- जानना, समझना आदि। किन्तु व्यावहारिक स्तर पर दोनों में थोड़ा अन्तर है। जैसे- हम कहते हैं कि हम मोहन को जानते हैं, तो सुनने में ठीक लगता है; लेकिन यह कहें कि आपको मोहन का ज्ञान है तो अटपटा-सा लगता है। कारण कि जब हम मोहन को जानने के सम्बन्ध में कथन करते हैं तो इसका अभिप्राय होता है कि हम मोहन से मिल चुके हैं, उसे देखा है आदि। परन्तु ठीक इसके विपरीत जब हम कहते हैं कि 'हम गणित जानते हैं तो हमारा अभिप्राय यह होता है कि यदि हमें गणित का कोई प्रश्न दिया जाये तो हम उसका हल निकाल सकते हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रथम प्रकार का कथन कुछ इन्द्रियों से सम्बन्धित है तथा दूसरे प्रकार का कथन बुद्धि से। खैर! इस भेद पर गहन चिन्तन की आवश्यकता यहाँ नहीं है। ज्ञान के सम्बन्ध में अनेक सिद्धान्त देखे जा सकते हैं, जो स्वयं अपने को ही सत्य होने का दावा करते हैं, जैसे- ज्ञानमीमांसीय द्वैतवाद (Epistemological Dualisrn), ज्ञानमीमांसीय प्रत्ययवाद (Epistemological Idealism), ज्ञानमीमांसीय एकवाद (Epistemological Monism), ज्ञानमीमांसीय वास्तववाद (Epistemological Realism) आदि। ज्ञानमीमांसीय द्वैतवाद वह सिद्धान्त है जिसके अन्तर्गत प्रत्यक्ष, स्मृति तथा अन्य अतार्किक ज्ञान-प्रक्रियाओं में ज्ञेय वस्तु और मानसिक प्रदत्त *. प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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