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________________ १०० प्रकृति प्रदत्त सभी वनस्पतियाँ भी सांस लेती हैं, कार्बन डाई-आक्साइड के रूप में और सांस छोड़ती हैं आक्सीजन के रूप में। इसलिए बाग-बगीचों का होना स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक है। पेड़-पौधों की यह जीवन प्रक्रिया हमारे जीवन को सम्बल देती है, स्वस्थ हवा और पानी देकर तथा आवाहन करती है जीवन को संयमित और अहिंसक बनाए रखने का। सारा संसार जीवों से भरा हुआ है और हर जीव का अपना-अपना महत्त्व है। उनके अस्तित्व की हम उपेक्षा नहीं कर सकते। उनमें सुख-दुःख के अनुभव करने की शक्ति होती है। जैनागमों में मूलत: स्थावर और त्रस ये दो प्रकार के जीव बतलाये गये हैं। स्थावर जीवों में चलने-फिरने की शक्ति नहीं होती, ऐसे जीव पाँच प्रकार के होते हैं- (१) पृथ्वीकायिक, (२) अप्कायिक, (३) वनस्पतिकायिक, (४) अग्निकायिक और (५) वायुकायिक। दो इन्द्रियों से लेकर पांच इन्द्रियों वाले जीव त्रस कहलाते हैं। जैनशास्त्रों में इन जीवों के भेद-प्रभेदों का वर्णन बड़े विस्तार से मिलता है जो वैज्ञानिक दृष्टि से भी सही उतरता है। इन सब जीवों का गहरा सम्बन्ध पर्यावरण से है। हमारे चारों ओर की भूमि, हवा और पानी ही हमारा पर्यावरण है। इनसे हमारा पुराना सम्बन्ध है लेकिन इससे भी अधिक पुराना सम्बन्ध है पौधों और जानवरों से। हमारे लिए सारे जानवर और पौधे जरूरी हैं। उनके बिना हमारा जीवन सुसंचालित नहीं हो सकता। यह पर्यावरण जीव-जन्तुओं और पेड़ पौधों के कारण ही जीवन्त है। उनकी हिंसा करने पर प्रकृति भी अपनी प्रतिक्रिया दिखलाती है। आज के भौतिक वातावरण में विज्ञान की चकाचौंध में हम अज्ञानवश अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए अपने प्राकृतिक पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं। प्रकृति का सन्तुलन डगमगाने लगा है। उसकी सादगी और पवित्रता कुचली जा रही है, नष्ट हो रही है। इसका मूल कारण है हमारी असंयममूलक तृष्णा और प्रबल आशा का संचरण। हमने वन, उपवन को नष्ट-भ्रष्ट कर ऊँची-ऊँची अट्टालिकायें बना लीं, बड़े-बड़े कारखाने स्थापित कर लिए जिनसे हानिकारक रसायनों और गैसों का निर्धारण हो रहा है, उपयोगी पशु-पक्षियों और कीड़ों-मकोड़ों को समाप्त किया जा रहा है। वाहनों आदि से ध्वनि प्रदूषण, गन्दगी, कूड़ा-कचड़ा आदि बहा देने से जल प्रदूषण और गैसों से वायु प्रदूषण हो रहा है। हम अपने क्षणिक लाभ के लिए सारी प्राकृतिक सम्पदा को असन्तुलित करने के दोषी बन रहे हैं। कुछ प्रदूषण प्रकृति से होता है पर उसे प्रकृति ही स्वच्छ कर देती है। जैसे पेड़-पौधों की कार्बन डाई आक्साइड सूर्य की किरणों से साफ होकर आक्सीजन में बदल जाती है। हमारा बहुत सारा जीवन इन्हीं पेड़-पौधों पर अवलम्बित है। वैज्ञानिकों ने अपने अनुसन्धान के आधार पर यह स्पष्ट किया है कि अलग-अलग तरह के पेड़-पौधों की पत्तियाँ विभिन्न गैसों आदि के जहर, धूल आदि से जूझकर पर्यावरण को स्वच्छ रखती हैं। जंगल कट जाने से वर्षा कम होती है, आबहवा बदल जाती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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