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________________ ९६ पक्षी का उल्लेख है। उसमें रत्नद्वीप से आने वाले पक्षी का इस प्रकार वर्णन है किसी व्यापारी का काफिला अपना माल क्रय-विक्रय करने के लिए प्रवास करता हुआ अजपथ देश में आता है। अजपथ वह है जहाँ बकरों पर आरूढ़ होकर प्रवास किया जाता है। बकरों की आँख पर पट्टी बांधकर अजपथ पहुँचते हैं और वज्रकोटि स्थित पर्वतोल्लंघन करने पर सख्त ठण्ड के कारण बकरों का खून जम जाता है। आंख की पट्टी खोलकर बकरों को मार डालते हैं और उनकी चमड़ी के बड़े-बड़े मशक बनाते हैं, फिर छूरी लेकर प्रवासी लोग उसमें प्रविष्ट होकर भीतर से मशक बन्द कर लेते हैं। इस पर्वत पर भारण्ड पक्षी आहार के लिए रत्नद्वीप से आते हैं और मशक को मांस पिण्ड समझकर ले उड़ते हैं और रत्नद्वीप ले जाकर रखते हैं। अन्दर वाला मनुष्य तुरन्त छूरी से मशक को काटकर बाहर निकल पड़ता है। वह रत्नों का प्रचुर संग्रह करके पुन: मशक में प्रविष्ट हो जाता है और भारण्ड पक्षी उसे उसी प्रकार उठा कर पर्वत पर ले आता है। उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ४, गाथा ६, ज्ञातासूत्र श्रुतस्कन्ध १, अध्याय ५, स्थानाङ्ग सूत्र ठा० ९, कल्पसूत्रकिरणावली आदि ग्रन्थों के उल्लेख एक से हैं और उनमें दो जीवों के एक पेट, दो ग्रीवा-जीभ-मुख, तीन पांव और मनुष्य की बोली बोलने वाला बतलाया गया है। उनमें उसके अप्रमत्त गुण का वर्णन किया है जबकि एक-सी गाथा देकर पारस्परिक असहयोग से भारण्ड पक्षी के नाश होने का वर्णन पञ्चतन्त्र के पांचवें तन्त्र 'अपरीक्षित कारक' में किया है। पञ्चतन्त्र का उल्लेख इस प्रकार है एक सरोवर में एक पेट और जुदे-जुदे मस्तक वाला एक भारण्ड पक्षी रहता था। उसने समुद्र तट पर भ्रमण करते हुए समुद्र तरंगों में प्रवाहित होकर आने वाले अमृत फलों को प्राप्त किया। भारण्ड ने एक मुख से खाकर फलों का रसास्वादन किया। फलों की मधुरता का वर्णन सुनकर दूसरे मुख ने कहा- थोड़ा स्वाद मुझे भी चखने दो। भारण्ड के पहले मुख ने कहा- अपना पेट तो एक ही है अत: मेरे खाने से तृप्ति तुम्हें भी हो गई फिर खाने से लाभ क्या? कहते हुए अवशिष्ट फल उस मुख को न देकर भारण्डी को दे दिया। मधुर स्वाद न पाने वाला दूसरा मुंह हमेशा उद्विग्न रहने लगा। एक बार दूसरे मुख को कहीं से विष फल मिल गया। उसने अमृत फल खाने वाले मुंह से कहा- निर्दयी! अधम! तुम मेरी उपेक्षा करते हो। अब मुझे यह विष फल मिला है, जिसे खाकर मैं अपमान का बदला लूँगा। भारण्ड के प्रथम मुख ने कहा- मूर्ख! ऐसा न करो, अपने दोनों मर जावेंगे। द्वितीय मुंह ने उसकी बात न मानकर प्रतिशोध की भावना से विष फल खा लिया, जिससे दोनों मर गये। __कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने देशीनाममाला, वर्ग ६, श्लोक १०८ में एवं अनेकार्थसंग्रह काण्ड ३, श्लोक १७३ में भारण्ड पक्षी का नामोल्लेख करके पञ्चतन्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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