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________________ कि आज लुप्त हो गया है किन्तु उसकी अनेक विशेषताएँ शास्त्रों में वर्णित हैं, जिससे दो हजार वर्ष पूर्व भारत में उसका अस्तित्व प्रमाणित है। भारण्ड पक्षी में अनेक विशेषताएँ थीं, जो बड़ी विलक्षण थीं। वह अपने विशाल पंजों से पकड़ कर बड़े से बड़े पशुओं/मानवों आदि को आसानी से ले उड़ता था। वत्स देश के महाराजा शतानीक की रानी मृगावती को ले जाकर मलयाचल के वन में गिरा देने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। महोपाध्याय समयसुन्दरजी ने मृगावतीचौपाई में अपने समय की चित्रकारी की अभिव्यक्ति देते हुए भारण्ड पक्षी के चित्र का भी वर्णन किया है जो इस प्रकार है भला नई भारण्ड पक्षी चीतर्या रे, एक उदर गाबड़ि दोय रे। जुगति भखइ फल जूजुआ रे, जीव जुदा बेउ होय रे। चतुर चीतारो रूप चीतरे रे राजमहल तणी भीत रे।। यह वर्णन कौशाम्बी के राजमहल में भारण्ड पक्षी के चित्र का है। हमारे संग्रह में और ज्ञान भण्डारों में भारण्ड पक्षी के चित्र सम्प्राप्त हैं। कल्पसूत्रवृत्ति में कुमारनन्दी स्वर्णकार के पंचशैलद्वीप जाने का साधन भारण्ड पक्षी ही था। विक्रमचरित्रादि कथा साहित्य के अनुसार भारण्ड पक्षी की विष्टा का नेत्राञ्जन करने पर नेत्रान्ध व्यक्ति भी दिन में तारे देखने योग्य दृष्टि पा जाते थे। कथा साहित्य में प्राप्त प्रचुर उदाहरणों को यहाँ प्रस्तुत करने का न स्थान है, न प्रसंग ही है। - भारण्ड पक्षी की शरीर रचना विशेष प्रकार की थी, इसकी देह में दो जीवात्माओं का निवास रहता था। उदर एक होते हुए भी चोंच-मुख दो थे। पञ्चेन्द्रिय जीव के 'दसहा जियाण पाणा इंदिय उसासाउ जोग बल रूवो' अर्थात् (१०) दस प्राण होते हैं। भारण्ड पक्षी के दो जीवात्मा होने पर भी मन एक होता है अतएव उसके उन्नीस प्राण होते हैं, ऐसा उल्लेख जैन शास्त्रों में पाया जाता है। यह पक्षी अपनी अप्रमत्त दशा और सतत् जागरूकता के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध था। जैन शास्त्रों में जिनेश्वर भगवान् की अप्रमत्त दशा और सतत् जागरूकता के कारण उनका वर्णन करते हुए लौकिक दृष्टान्तों में भारण्ड पक्षी का उपमा-सादृश्य बतलाया गया है। दो जीवात्मा वाला भारण्ड पक्षी मन एक होने से शरीर व्यापार- उदरपूर्ति बड़ी ही सतर्कता से युक्तिपूर्वक करता था, क्योंकि दोनों मुख से यदि एक साथ ही भक्षण करे तो वह आहार उसके गले में फँस कर उसकी मृत्यु का कारण बन जाये। यह पक्षी मांसाहारी और मनुष्य की भाषा बोलने वाला था और इसके तीन पांव होते थे। आज के युग में प्रचलित दो इंजन वाले हवाई जहाज/विमान से इसकी आकृति की कल्पना की जा सकती है। वसुदेवहिण्डी नामक छठी शताब्दी में निर्मित ग्रन्थ के पृष्ठ २४९ में भारण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525040
Book TitleSramana 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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