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महाकाव्यों के प्रस्तुत प्रसंग के प्रायः सभी पद्य चमत्कारपूर्ण हैं, पर स्वाभाविकता की दृष्टि से वीरनन्दी कहीं-कहीं दोनों से आगे चले जाते हैं।
१०. सूर्यास्त आदि का वर्णन - कालिदास ने रघुवंश में यत्र-तत्र प्रभात आदि का संक्षिप्त वर्णन किया है, पर इसके लिए किसी पूरे सर्ग का उपयोग नहीं किया । श्रीहर्ष ने नैषध के उन्नीसवें सर्ग में प्रभात का वर्णन किया है, जो माघ की तुलना में फीका है। भारवि ने किरात के नवम सर्ग में और माघ ने माघ के तीन (९-११) सर्गों में सूर्यास्त से प्रभात तक का, जिसमें गोष्ठी, मधुपान, प्रणयालाप तथा सम्भोग शृङ्गार भी सम्मिलित हैं, आकर्षक वर्णन किया है। वीरनन्दी ने चन्द्रप्रभचरित के दशम सर्ग में मधुपान को छोड़कर शेष सभी का चमत्कारपूर्ण वर्णन किया है, जो किरात और माघ से भी अच्छा है। इस प्रसङ्ग के पद्यों का पाठक वीरनन्दी की श्लाघा किये बिना नहीं रह सकता । सूर्यास्त के प्रसंग में किरात (९, १), माघ (९, १) और चन्द्रप्रभचरित (१०,१) को ध्यान से पढ़ने पर तीनों की चमत्कृति का उत्तरोत्तर प्रकर्ष ज्ञात होने लगता है। केवल एक ही पद्य नहीं दसवाँ सर्ग पूरा का पूरा चमत्कारों से भरा हुआ है, चमत्कार का मूलकारण उक्ति वैचित्र्य है । इस दृष्टि से वीरनन्दी प्रस्तुत अन्य कवियों से कहीं अधिक सफल हुए हैं।
११. युद्ध वर्णन - महाकाव्य में युद्ध जैसे भयावह विषय का भी सरस वर्णन किया जाता है। रघुवंश के तीन ( ३, ७, १२) सर्गों के कुछ पद्यों में युद्ध का संक्षिप्त किन्तु सारगर्भ वर्णन है । किरात के पूरे पन्द्रहवें तथा माघ के उन्नीस - बीसवें सर्गों में युद्ध का वर्णन किया गया है । चन्द्रप्रभचरित के पूरे पन्द्रहवें सर्ग में युद्ध का विस्तृत वर्णन है। रघुवंश की भाँति अन्य सर्गों में भी इसका जो संक्षिप्त वर्णन है, वह इससे भिन्न है । किरात और माघ की भाँति चन्द्रप्रभचरित में वर्णित युद्ध के अर्धचन्द्र, असि, कुन्त, कवच, गदा, चक्र, चाप, परशु, प्रास, बाण, मुद्गर, यष्टि, वज्रमुष्टि, शङ्कु और शक्ति आदि अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग का उल्लेख है। कालिदास ने युद्ध-वर्णन के पद्यों में अर्थचित्र को और भारवि तथा माघ ने शब्दचित्र को मुख्यता दी है, पर वीरनन्दी ने इस सन्दर्भ में मध्यमार्ग का आश्रय लिया है। इसीलिए इन्होंने एक पद्य में एकाक्षर चित्र, एक पद्य में ट्र्याक्षर चित्र तथा कुछ पद्यों में यमक का प्रयोग किया और शेष में अर्थचित्र का | शब्दचित्र के प्रदर्शन में भारवि और माघ दोनों पटु हैं, पर इसमें माघ अधिक सफल हुए हैं। रघुवंश की भाँति चन्द्रप्रभचरित के युद्धवर्णन में वीर रस का जो आस्वाद प्राप्त होता है, किरात और माघ में नहीं । चन्द्रप्रभचरित का वर्ण्यविषय किरात और माघ जैसा है, पर भाषा और शैली रघुवंश जैसी । यही कारण है कि युद्ध जैसे विषय में भी वीरनन्दी को कालिदास की ही भाँति सफलता प्राप्त हुई है। चैन्द्रप्रभचरित के प्रस्तुत प्रसंग में एक विशेष बात यह भी है कि रणाङ्गण में विजय पाने वाले राजा पद्मनाभ को जब उसके एक सैनिक ने प्रतिद्वन्द्वी राजा पृथ्वीपाल का
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