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________________ विषय चन्द्रप्रभचरित २५. चन्द्रप्रभ के गणधरादिकों पहले उपाध्याय फिर की संख्या में अवधिज्ञानी उत्तरपुराण पहले अवधिज्ञानी फिर उपाध्याय इस वैषम्य पर विचार-(१) पुत्र के न होने पर राजा श्रीषेण का चिन्तित होना उत्तरपुराण में वर्णित है। ठीक ऐसे ही प्रसंग में रघुवंश (१,३३-३४) में दिलीप का, रघुवंश (१०,२-४) में दशरथ का और धर्मशर्माभ्युदय (२,६९-७४) में महासेन का चिन्तातुर होना लिखा है। किन्तु चन्द्रप्रभचरित (३,३०-३५) में श्रीकान्ता का चिन्तामग्न होना चर्चित है। इसका आधार उत्तरपुराण के स्थान में गुणभद्र की दूसरी कृति 'जिनदत्तचरितम्' है, जिसमें पुत्र के न होने से जीवंजसा की चिन्ता का वर्णन है।४७ अतएव प्रथम वैषम्य के आधार पर यह सिद्ध नहीं होता कि उत्तरपुराण, चन्द्रप्रभचरित की कथावस्तु का आधार नहीं है। (२) उत्तरपुराण में श्रीषेण पुरोहित से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछते हैं, पर चन्द्रप्रभचरित में वे चारण मुनि अनन्त का दर्शन करते हैं, जिससे वे चिन्ता से मुक हो जाते हैं। सूक्ष्म विचार करने पर ज्ञात होता है वीरनन्दी ने जैनसंस्कृति की अनुकूलता को ध्यान में रखकर यह परिवर्तन किया। . (७) उत्तरपुराण के अनुसार अजितंजय की राजधानी का नाम अयोध्या और चन्द्रप्रभचरित के अनुसार कोशला है। कोषों के ८ अनुसार दोनों का अर्थ एक ही है, अत: कोई विरोध नहीं है। (९-१०) चन्द्रप्रभचरित में अजितसेन का अपहरण चण्डरुचि असुर करता है, और बाद में पुरषाटवी के निकट हिरण्य देव से भेंट होती है- यह उत्तरपुराण में चर्चित नहीं है। इन घटनाओं का स्रोत अन्यत्र न मिलें तो यह मानना होगा कि वीरनन्दी ने गुणभद्र के जिनदत्तचरितम् से सहायता ली है। वह इस प्रकार दधिपुर के उद्यान में जिनदत्त का उसके स्वामी सेठ समुद्रदत्त से परिचय हो जाता है। जिनदत्त के वृक्षायुर्वेद के ज्ञान का अपने उद्यान में चमत्कार देखकर समुद्रदत्त उनसे प्रसन्न हो जाता है। फलत: वह वसन्तोत्सव में जिनदत्त का खूब सम्मान करता है और फिर उसे अपने साथ व्यापार के निमित्त सिंहलद्वीप में लिवा ले जाता है। सिंहलद्वीप के राजा मेघवाहन की पुत्री श्रीमती के शयनागार की रक्षा की लिए जो पहरेदार नियुक्त होता है वह रात्रि में मारा जाता था। इससे मेघवाहन हैरान था। जिनदत्त ने प्रयत्न करके उस भयंकर सर्प का पता लगाकर पिटारी में बन्द कर दिया, जो प्रतिदिन पहरेदार को प्राणों का अपहरण करता रहा। इससे प्रसन्न होकर मेघवाहन ने अपनी कन्या श्रीमती का जिनन्दत्त के साथ विवाह कर दिया। सिंहलद्वीप से लौटते समय जिनदत्त की पत्नी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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