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है अर्थात् 'मुखं चन्द्रः' 'मुख चन्द्रमा है' यह रूपक का उदाहरण है। यहाँ मुख आरोप का विषय अर्थात उपमेय है और चन्द्रमा आरोप्य अर्थात उपमान। यहाँ उपमान उपमेय का उपरञ्जक (शोभाधायक) है। यहाँ उपरञ्जक कहने से परिणामालङ्कार का निरास होता है। जहाँ आरोप्य (उपमान) आरोप विषय (उपमेय) के रूप में प्रकृत का उपयोगी हो वहाँ परिणामालङ्कार होता है। ‘आरोप्यं प्रकृतोपयोगीत्यनेन सर्वेभ्योऽलङ्कारेभ्यो वैल्क्षण्य मस्म'। पृष्ठ ६७
इसी प्रकार से प्रस्तुत ग्रन्थ में और-और भी पचासों अलङ्कारों में अन्तर बतलाया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेकानेक ऐसे भी विषय हैं जो अन्य ग्रन्थों में कम मिलेंगे। सन्दर्भ
‘शिक्षा, कल्पो, व्याकरणं, निरुक्तं, छन्दोविचितिः, ज्योतिषं च षडङ्गानि' इत्याचार्याः। उपकारकत्वादलङ्कारः सप्तममङ्घम् इति यायावरीयः। ऋते च तत्स्वरूपपरिज्ञानाद्वेदार्थानवगतिः। – काव्यमीमांसा, अध्याय २. 'आरोप्यमाणस्य प्रकृतोपयोगित्वे परिणाम:।' - अलङ्कारसर्वस्व, पृष्ठ ५१.
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