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एक बजे रात तक गहरी नींद आने से मरीज यह कहता है कि कुछ लाभ हुआ और फिर जब उसका ध्यान एक बजे के बाद की स्थिति पर जाता है तो वह यह भी कहता है कि विशेष लाभ नहीं हुआ- ये दोनों उत्तर भले ही परस्पर विरुद्ध प्रतीत हों, पर वक्ता के अनुभव को ठीक-ठीक बतलाने के कारण बिलकुल सही हैं। इसी तरह अनेकान्तवाद के ऊपर और भी जो दूषण लगाये जाते थे, भट्टाकलङ्कदेव ने उन सभी का युक्तिपूर्वक निरसन किया है।
अनेकान्त में सप्तभङ्गी की योजना एकान्त के सम्यगेकान्त तथा मिथ्र्यकान्त और अनेकान्त के सम्यगनेकान्त और मिथ्यानेकान्त- ये भेद, सिद्धसेन द्वारा स्वीकृत मति-श्रुत के अभेद की आलोचना, प्रत्यक्ष परोक्ष के परिष्कृत लक्षण, बारह अङ्गों का स्वरूप, अवधिज्ञान के छह भेदों का स्पष्ट विवेचन, साधारण पारिणामिक भावों का कथन, लक्षण के आत्मभूत और अनात्मभूत- ये भेद, आर्यों और म्लेछों के उत्तर भेद, लेश्याओं के अंशों का निरूपण, सकलादेश और विकलादेश के लक्षण, स्यात्कार का प्रयोजन, काल आदि आठ के आधार से क्रम और योगपद्य का कथन, क्रिया-मात्र ही काल है, इसकी समालोचना- आदि अनेक विषय प्रस्तुत ग्रन्थ में दृष्टिगोचर होते हैं, जो अकलङ्कदेव की देन हैं। तत्त्वार्थसूत्र के किसी भी सूत्र का ठीक-ठीक रहस्य प्रस्तुत ग्रन्थ के बिना ज्ञात नहीं हो सकता। प्रतिभाशाली मनीषिमूर्धन्य स्व० डाक्टर महेन्द्रकुमार जी के सुन्दर सम्पादन तथा हिन्दी सार के कारण यह ग्रन्थ सभी के लिये उपादये हो गया है।
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