SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत समस्या की पूर्ति तीन प्रश्नों से की गई है— पहला प्रश्न कस्तूरी किससे होती है? दूसरा प्रश्न - हाथियों के झुण्ड को कौन मारता है ? तीसरा प्रश्न - युद्ध में कार क्या करता है ? इन तीनों के क्रमश: उत्तर (१) मृग से ( (मृगात्), (२) सिंह और (३) भाग जाता है ( पलायते ) । 'यदि' शब्द के प्रयोग से भी समस्यापूर्ति की जा सकती हैजैस - 'अग्निस्तुहिनशीतल:' इसकी पूर्ति देखिये - प्रतीच्यां यदि मार्तण्डः समुदेति स्फरत्करः । तदा संजायते ' नूनमग्निस्तुहिन शीतलः । । — का०क० ४/७ । इसी तरह और भी उपाय बतलाये हैं, जिनसे शीघ्र ही समस्यापूर्ति की जा सकती है। प्रस्तुत ग्रन्थ भारतीय साहित्य का भूषण है। श्री देवेश्वर ने इसी के आधार से 'कविकल्पलता' की रचना की। इसमें कहीं-कहीं तो पूरे के पूरे श्लोक मिलतेजुलते हैं। अलंकारमहोदधि- अलंकारमहोदधि की रचना आचार्य नरेन्द्रप्रभसूरि ने महामात्य वस्तुपाल की प्रार्थना पर अपने गुरु आचार्य नरचन्द्रसूरि की आज्ञा से की थी । इसकी टीका भी स्वयं नरेन्द्रप्रभ ने विक्रम संवत् १२८२ में समाप्त की थी, जो ४५०० (साढ़े चार हजार) अनुष्टुप श्लोक प्रमाण है। प्रस्तुत ग्रन्थ आठ तरंगों में विभाजित है । काव्य का स्वरूप, प्रयोजन, भेद, शब्द, अर्थ, गुण, दोष, अलंकार और ध्वनि आदि विषयों पर आचार्य नरेन्द्रप्रभ ने विशद् प्रकाश डाला है। काव्यप्रकाश की तरह इसमें भी नाटकीय तत्त्वों पर प्रकाश नहीं डाला गया है। शेष सभी विषयों पर काव्यप्रकाश में कहीं अधिक विवेचन किया गया है। साहित्यदर्पण इसके सामने बहुत छोटा है। साहित्यदर्पण में अलंकारों का विवेचन काव्यप्रकाश से अधिक है । किन्तु अलंकारमहोदधि का अलंकार विवेचन साहित्यदर्पण से कहीं अधिक है। प्रस्तुत ग्रन्थ में पृष्ठ २१२ - १३ पर वृत्यनुप्रास के अवान्तर भेद- कार्णाटी, कौन्तली, कौंगी, कौंकणी, वानवासिका, त्रावणी, माथुरी, मात्सी और मागधी आदि बतलाये हैं, जो काव्यप्रकाश और साहित्यदर्पण आदि ग्रन्थों में नहीं हैं। काव्यप्रकाश और काव्यानुशासन ( हेमचन्द्र) के समान प्रस्तुत ग्रन्थ में भी ध्वनि का विस्तार से वर्णन है । सरल शब्दों में परिभाषा बनाना और सरल उदाहरण चुनना प्रस्तुत ग्रन्थ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525039
Book TitleSramana 1999 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy