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________________ श्रमण / अप्रैल-जून १९९९ ओढ़े कंबल अथवा खेश, नारिह पहिरे मोटे बेस । ऊँच-नीच कोउ न पहिचान, धनी दरिद्र भये समान । चोरि-धारि दीसै कहूं नाहि, यों ही अपभय लोग डराहीं । इस प्रकार बनारसीदास ने शोकाकुल- समाज का चरित चित्रण बड़े ही मार्मिक ढंग से किया है। इनकी काव्य- शैली, भाषा, भाव आदि की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है। इनकी काव्य रचना की भाषा जनसाधारण होने के कारण विशेष लोकप्रिय रही है। भाषा में जटिलता एवं दुरूहता नहीं आने पायी है। ९४ बनारसीदास की भाषा पूर्वी है। समाज में “फारसी" एवं "अरबी" शब्दों का प्रचलन सामान्य हो गया था। इनकी रचनाओं में यत्र-तत्र प्रयोग "अरबी" एवं "फारसी " शब्दों का देखने को मिलता है । यथा 'दर्द' एवं 'शोर' आदि। कविवर बनारसीदास की मृत्यु मुगल शासक सम्राट् जहाँगीर के शासन काल में जौनपुर में ही हुई थी । ७ इनकी मृत्यु से जौनपुर के नगरवासी एवं सामान्यजन बड़े दुःखी हुए। मध्यकालीन-शर्की- शासकों ने हिन्दू एवं मुस्लिम कवियों, लेखकों एवं महत्त्वपू साहित्यकारों को राजकीय संरक्षण प्रदान कर जौनपुर के साहित्यिक गौरव को प्रतिष्ठि किया। यह परम्परा मुगलकाल में भी जारी रही। इन साहित्यकारों एवं विद्वानों के महत्त्वपूर्ण साहित्यिक अवदान से जौनपुर मध्यकाल में "शिराज-ए-हिन्द " " कहलाया और इसमें बनारसी दास की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। ८ सन्दर्भ - सूची १. अर्द्ध कथानक, संपा० श्री नाथूराम प्रेमी, तृतीय संस्करण, जयपुर, १९८७ ई०, “अर्द्ध- कथानक की भाषा', पृ० २४. सैयद एकबाल अहमद, शर्की- राज्य जौनपुर का इतिहास, जौनपुर, १९६८, पृ० ५२१. पूरब देश जौनपुर गांउ बसै गोमती तीर सुठांऊ तहां गोमती इहि विधि बहै, ज्यों देखी त्यों कविजन कहै । प्रथम हि दक्खन मुख बही, पूरब मुख परबाह २. ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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