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________________ शर्की - कालीन हिन्दी साहित्य के विकास में बनारसी दास का अवदान : ९३ में इस समय भी एक बड़ा भीटा है। भर जाति जौनपुर में अधिक संख्या में आबाद थी, जिनको अन्त में मुसलमानों और राजपूतों ने नष्ट कर दिया। इनका एक बड़ा दुर्ग सुल्तानपुर में भी था। कन्नौज के शासकों के काल में छोटी-छोटी जातियाँ भर, मुसहर, सोइरी मिर्जापुर के दक्षिण भाग तथा इसके निकट अपना अधिकार जमाये हुए थीं। ये लोग बुन्देलखण्ड और बनारस के निकट के रहने वाले थे। ६ आज भी भर जाति जौनपुर के अन्यान्य क्षेत्रों में अधिक संख्या में निवास करती हैं; किन्तु सुइरी जाति के सन्दर्भ में कोई सूचना अब नहीं मिलती है। जलालपुर, जौनपुर जनपद तथा वाराणसी के सीमा पर बसे एक गाँव का नाम आज भी 'सोइरी रामपुर' है। बनारसीदास अपने समय के एक लोकप्रिय कवि थे। उस समय न्यायालयों एवं राजदरबारों की भाषा ‘फारसी' थी; किन्तु जनसामान्य जिस भाषा का प्रयोग करते थे, वह यही भाषा है जिसे कविवर बनारसी दास ने अपने काव्य रचना में प्रयोग किया है। इनकी भाषा सरल, सुबोध एवं जनसाधारण की थी। इससे इनकी रचनाओं की समाज में विशेष लोकप्रियता रही है। भाषा, भाव- शैली एवं छन्द रचना के आधार पर बनारसी दास अपने समय के प्रतिनिधि कवि थे। उनकी भाषा में चमत्कार, लालित्य, ओज आदि गुण पूर्णरूप से परिलक्षित होते हैं। बनारसीदास ने अपनी रचनाओं से शर्की - कालीन - हिन्दी साहित्य को विशेष समृद्ध बनाया। इनकी चार प्रमुख कृतियाँ हैं। " बनारसी विलास", "नाटक समयसार”, “अर्द्ध- कथानक" "नाममालाकोश" । इन रचनाओं में "अर्थकथानक " विशेष महत्त्वपूर्ण काव्य रचना है। इस कृति में आपने बाल्यकाल पर बड़े ही स्वाभाविक एवं मार्मिक ढंग से प्रकाश डाला है। यह कृति हिन्दी साहित्य का अनमोल रत्न है। नाटक रचना में भी बनारसीदास का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है। इन्होंने अपने नाटकों में नाटक के सभी तत्त्वों का खुलकर प्रयोग किया है। बादशाह अकबर का अधिकार शर्की- राज्य- जौनपुर पर भी था। उसने गोमदी नदी पर शाही पुल का निर्माण भी कराया था, जो मुगल वास्तु-कला का अप्रतिम उदाहरण है। अकबर की मृत्यु की सूचना जब जौनपुर के नागरिकों को मिली तो, लोगों ने विशेष शोक मनाया। बनारसीदास ने इस शोकाकुल- समाज का चरित - चित्रण इस प्रकार किया है। — इस ही बीच नगरमैं सोर, भयो उदंगल चारिहु ओर । घर घर दर दर दिये कपाट, हरवानी नहीं बैठे हाट । भले बस्त्र उर भूसण भले, ते तब गाड़े धरतीतले । घर घर सबनि विसाहे सस्त्र, लोगन्ह पहिरे मोटे बस्त्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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