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________________ ८० : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ बोल संग्रह में भी कहा गया है कि साधुओं के लिए पाँच महाव्रत मूलगुण हैं तथा श्रावकों के लिए पाँच अणुव्रत मूलगुण हैं। २२ गुरुतत्त्वविनिश्चय के अनुसार भी पाँच ही मूलगुण हैं, किन्तु उत्तरगुण १०३ गिनाये गये हैं। २३ उत्तरगुणों के अन्तर्गत ४२ पिण्डविशुद्धि, ८ समिति, २५ भावना, १२ तप, १२ प्रतिमा और ४ अभिग्रह को समावेशित किया गया है। यहाँ प्रवृत्ति स्वरूप गुप्ति का समिति में समावेश करते हुए समिति के आठ भेद दर्शाये गये हैं। इन सभी सन्दर्भो से यह तो स्पष्ट है कि श्वेताम्बर परम्परा में भी मूलगुण और उत्तरगुण की संख्या का विभाजन किया गया है। गुरु के प्रकार जैनागमों में गुरु के प्रकार को विभिन्न रूपों में विवेचित किया गया है। किसी ग्रन्थ में तीन प्रकार, तो किसी में चार और किसी में पाँच प्रकार के बताये गये हैं। जैसे- रायपसेणइयसुत्तं२४ (राजप्रश्नीयसूत्र) में तीन – कलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य; गुरुतत्त्वविनिश्चय२५ में चार - नामाचार्य, स्थापनाचार्य, द्रव्याचार्य और भावाचार्य; जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश२६ में पाँच - गृहस्थाचार्य, प्रतिष्ठाचार्य, बालाचार्य, निर्यापकाचार्य और एलाचार्य, प्रकार बताये गये हैं। कलाचार्य कलाचार्य की योग्यता एवं कार्य का स्पष्ट वर्णन अबतक कहीं भी देखने को नहीं मिला है। चूँकि जैन शिक्षा-पद्धति में बहत्तर (७२) कलाओं की शिक्षा देने का विधान है, अत: कहा जा सकता है कि जो आचार्य ७२ कलाओं की शिक्षा, विशेषत: ललितकला और जीवनोपयोगी कलाओं की शिक्षा देते थे, उन्हें कलाचार्य कहा जाता रहा होगा। शिल्पाचार्य जैन-ग्रन्थों में शिल्पाचार्य की महत्ता पर विशेष प्रकाश डाला गया है। जटासिंह नन्दि ने वरांगचरितम् के द्वितीय सर्ग में कहा है कि शिल्पाचार्य को विविध प्रकार की ललितकलाओं का परिज्ञान आवश्यक है। जो शिल्पाचार्य वास्तुकला की शिक्षा में प्रवीण हैं वे सुयोग्य स्नातकों को विभिन्न कला में दक्ष करने में समर्थ होते हैं। २७ धर्माचार्य जो धर्म का बोध कराते हैं, वे धर्माचार्य हैं। धर्माचार्य का वर्णन प्राय: ग्रन्थों में देखने को मिलता है। पञ्चाध्यायी में कहा गया है कि व्रत, तप, शील और संयम आदि को धारण करने वाला आचार्य नमस्करणीय है तथा साक्षात् गुरु है। २८ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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