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________________ आचाराङ्ग के कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र : एक विश्लेषण : ३ साधुजन संयम का जीवन जीते हैं। लज्जमाणा पुढो पास! (पृ०८/१७)। ऐसे शान्त और धीर व्यक्ति देहासक्ति से मुक्त होते हैं - इह संति गया दविया (पृ० ४२/१४९)। संक्षेप में महावीर हमें आमन्त्रित करते हैं कि हम प्रत्यक्षत: देखें कि संसार में हिंसा के कारण जो आतंक व्याप्त है उसका मूल देहासक्ति में है और इस आसक्ति को समाप्त करने के लिए संयम आवश्यक है। वे इस सन्दर्भ में साधुओं को लक्षित करते हैं और कहते हैं कि देखो, उन्होंने किस प्रकार हिंसा से विरत होकर संयम को अपनाया है। ऐसे लोग ही हमारे सच्चे मार्गदर्शक हैं। क्षण को पहचानो और प्रमाद न करो महावीर कहते हैं कि हे पण्डित! तू क्षण को जान- खणं जाणाहि पंडिए (७४/२४)। ___ यह जैनदर्शन का एक बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है। प्रश्न किया जा सकता है कि यहाँ 'क्षण' से क्या आशय है? 'क्षण' मनुष्य की यथार्थ स्थिति की ओर संकेत करता है जो कम से कम सन्तोषजनक तो नहीं ही कही जा सकती। यदि हम अपनी और संसार की वास्तविक दशा की ओर गौर करें तो हमें स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि (१) यह संसार परिवर्तनशील है और यह सदैव एक-सा नहीं बना रहता। आज व्यक्ति यौवन और शक्ति से भरपूर है; किन्तु कल यही व्यक्ति वृद्ध और अशक्त हो जाएगा। आयु बीतती चली जा रही है और उसके साथ-साथ यौवन भी ढलता जा रहा है ---- वयो अच्चेइ जोव्वणं च (७२/१२)। (२) दुःख और सुख व्यक्ति का अपना-अपना होता है, इसे भी समझ लेना चाहिए। जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं, (७४/२२)। अत: यह सोचना कि कोई भी अन्य व्यक्ति/परिजन विपरीत स्थितियों में व्यक्ति का सहायक हो सकता है, केवल भ्रम मात्र है। न तो हम दूसरों को त्राण या शरण दे सकते हैं और न ही दूसरे हमें त्राण या शरण दे सकते हैं। नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमं पि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा। (७२/८) (३) परिस्थितियाँ बहुत कठिन हैं। व्यक्ति दिन-ब-दिन दुर्बल होता जा रहा है, उसे किसी भी क्षण मृत्यु घेर सकती है। बहुत ही कलात्मक भाषा में कहा गया है - णत्थि कालस्य णागमो (८२/६२)- मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है और फिर भी व्यक्ति अपने जीवन से अत्यधिक लगाव पाले हुए है। वह अपने दैहिक सुख के अनेक साधनों को जुटाता है और समझता है यह अर्थार्जन उसे सुरक्षा प्रदान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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