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________________ प्राकृत वैद्यक (प्राकृत भाषा की आयुर्वेदीय अज्ञात जैन रचना) : ३७ ससिराइ लिविभंडं गोमय लोणीय तहय महुजुत्तं । अह तह तक्कं पाणं सियकुटुं चिरभवं जाउ ।।७४।। मिरियाकुट्ठ विडंगा थोथउ रोरधाय मणसिला सांजी। हरियालो गोमुत्तो लेवे सियकुट्टयं जाइ ।।७५।। अभया पवाडवीण जवसु चुण्णेण मवउ कांजीए । कच्छं दह्य पणासइ लेवेणय संसरउणत्थि ।।७६ ।। कूठ कणा तिव सरिसव वीय पवाडइ रयणि मोथाइं। विवची पावक हेउ दद्दू लेवेण णासेइ ।। ७७।। विल्लस्समूल कत्थं दुद्धं तंदुल जलि अह पाणेण । अहविछिणे भवकत्थं सक्कर सह छद्दि णासेइ ।।७८।। कण जवखारु दुभाया दाडिम वसु सोलह गुलभाया। विभाय मिरिय गुलिया चउ टंकहं खास अवहरइ ।।७९।। कायहलो वय सिंगी रोहिस मुत्थाय स विसाय । हरडइ समाण चुण्णेखद्धे खासं पणासेइ।।८।। महुसारं गोखुरुवं गोदक्खा कढिवि सक्करा करसे। धत्ते विणुं कयपाणं खय खीणं मरुपणासेइ ।। ८१।। हयगंधा पयपीए किसदे हा थूलयं च होएह । आइसु. तिहला महुसह णासइ परिणाम सूलाई ।। ८२।। गोखरु वाजीगंधा खीरे खुद्देण लेहमाणेण । खयखीणं मरु णासह होइ बलं वणु वलएह ।। ८३।। एल वलाहा कुटुं काढह सम देवदारु भारंगी। करसं२ घयगुड घाति पियह वाय जरुणासं ।। ८४।। रत्तंदणु पउमाक्खं णिवधणा रुयाधंणा गुरी चाय । डाह तिसारुइ छद्दी कत्थं पित्तज्जर सिंभहरी।। ८५।। छिणोजयाकत्थं चउत्थभायं ससीसयं भरह । किण्हा सह पीयंतो कफवाय रयणिजरं हणए ।। ८६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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