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२०
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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
संचय शिशिर
कफ
शरद्
वर्षा
वर्षा
उपर्युक्त श्लोक का सारांश निम्न प्रकार से समझा जा सकता है - दोष
प्रकोप प्रशमन
वसन्त ग्रीष्म वात ग्रीष्म
वर्षा पित्त
शरद हेमन्त वातादि दोषों के उपर्युक्त प्रकार से संचय, प्रकोप और प्रशमन को ध्यान में रखते हुए लोगों को अपने खान-पान की व्यवस्था करनी चाहिये और उस पर पूरा ध्यान देना चाहिये। अत: किस ऋतु में किस प्रकार का आहार उचित है, इसका निर्देश भी यशस्तिलक में सुन्दर ढंग से किया गया है, जो निम्न प्रकार है (देखिये, श्लोक ३४९, पृ० ५१४) - ऋतु
खाद्य - पेय रस शरद्
स्वादु (मधुर), तिक्त, कषाय रस प्रधान आहार
मधुर, अम्ल, लवण रस प्रधान आहार वसन्त
तीक्ष्ण, तिक्त, कषाय रस प्रधान आहार
प्रशम रस वाला आहार। इसी प्रकार ऋतु के अनुसार खाद्य-पेय सामग्री का निर्देश भी सोमदेव ने बड़े अच्छे ढंग से किया है। (देखिए, श्लोक ३५० से ३५४, पृ० ५१४) ऋतु
खाद्य - पेय सामग्री शिशिर
ताजा भोजन, खीर, उड़द, इक्षु, दधि, घृत और तेल से
बने खाद्य पदार्थ, पुरन्ध्री। वसन्त
जौ और गेहूँ से बना प्रायः रूक्ष भोजन। ग्रीष्म
सुगन्धित चावलों का भात, घी, दली हुई मूंग की दाल, विष (कमल नाल), किसलय (मधुर पल्लव), कन्द, सत्तू, पानक (ठण्डाई), आम, नारियल का पानी तथा चीनी मिश्रित दूध या पानी।
पुराने चावल, जौ तथा गेहूँ से बने पदार्थ। शरद्
घृत, मूंग, शालि, लप्सी, दूध से निर्मित पदार्थ (खीर आदि), परवल, दाख (अंगूर), आँवला, ठण्डी छाया, मधुर रस वाले पदार्थ, कन्द, कोपल, रात्रि में चन्द्रकिरण आदि।
ग्रीष्म
वर्षा
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