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________________ १८८ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ अत्यन्त प्रामाणिक अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित है। इसके पश्चात् Index of Words के अन्तर्गत अकारादिक्रम से शब्द-सूची और उनका अंग्रेजी भाषा में प्राय: एक से अधिक अर्थ दिया गया है। इसके पश्चात् व्याकरण की दृष्टि से अति उपयोगी Reverse Index of Words और Reverse - Sorted Lemmas भी दिया गया है। आंग्ल भाषा में होने के कारण इस ग्रन्थ का सम्पूर्ण विश्व में आदर होगा। ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के अनुवाद और अत्यन्त उपयोगी शब्दसूचियों के संकलन तथा उसे सर्वोत्तम रूप में प्रकाशित करने के लिये अनुवादक और प्रकाशक दोनों ही अभिनन्दनीय हैं। यह पुस्तक विद्वद्जगत् में अत्यन्त लोकप्रिय होगी, इसमें सन्देह नहीं है। ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रत्येक पुस्तकालयों के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय है। भक्ति प्रसून (कविता संग्रह) : रचनाकार श्री अरुण जैन; प्रकाशक- दिवाकीर्ति शिक्षा एवं कल्याण समिति, ललितपुर २८४४०३ (उत्तर प्रदेश) प्रथम संस्करण१९९८ई०; आकार- डिमाई; पृष्ठ ११२; मूल्य-२१/- रुपये मात्र। ... प्रस्तुत कृति के रचनाकार श्री अरुण जैन पेशे से एक अभियन्ता हैं, परन्तु हिन्दी साहित्य के प्रति उनका अगाध प्रेम है। एक उच्च संस्कारी जैनकुल में उत्पन्न होने के कारण सन्तशिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा है। प्रस्तुत कृति में उनके द्वारा रचित ७२ कविताओं का संकलन है और ये सभी आचार्यश्री के गुणों की स्तुतिरूप हैं। वस्तुत: यह रचना एक विनीत शिष्य द्वारा अपने गुरु के चरणों में प्रस्तुत विनयांजलि है जिसे शब्दों में व्यक्त किया गया है। अत्यन्त सरल भाषा में रचित ये कवितायें अत्यन्त हृदयस्पर्शी और सभी के लिये पठनीय हैं। ऐसी भक्तिप्रद रचना के प्रणयन और प्रकाशन के लिये रचनाकार व प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक व मुद्रण निर्दोष है। सिद्धान्तसार- कर्ता-आचार्य जिनचन्द्र; टीकाकार-भट्टारक ज्ञानभूषण; सम्पादकअनुवादक- ब्रह्मचारी विनोदकुमार जैन एवं ब्रह्मचारी अनिलकुमार जैन; प्रका०- श्री दिगम्बर साहित्य प्रकाशन समिति, बरेला, जबलपुर (मध्य प्रदेश); प्रथम संस्करणअक्टूबर १९९८ई०; आकार- डिमाई; पृष्ठ- ७०; मूल्य- १०/- रुपये। दिगम्बर परम्परा में आचार्य जिनचन्द्रकृत सिद्धान्तसार और उस पर ब० ज्ञानभूषण द्वारा रचित संस्कृत टीका. का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अब तक इनके एक से अधिक प्रकाशन भी हो चुके हैं, परन्तु इसका हिन्दी अनुवाद उपलब्ध न था। ब्रह्मचारी द्वय ने मूल ग्रन्थ और उसके संस्कृत टीका का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर पाठकों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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