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श्रमण
साहित्य-सत्कार
महामनीषी आचार्य श्री विद्यासागर - जीवन एवं साहित्यिक अवदान : लेखक डॉ० विमलकुमार जैन: प्रकाशक- ज्ञानोदय संस्थान, जैन बाग, वीर नगर, सहारनपुर, १९९६ ई०; पृष्ठ ६७६, मूल्य- १०० रुपये ।
चौदह अध्यायों में विभक्त इस विशाल ग्रन्थ के प्रारम्भिक चार अध्यायों में आचार्यश्री के जीवनवृत्त, स्फुट साहित्य, प्रवचन एवं हिन्दीकाव्य संग्रह, काव्यानुवाद, संस्कृतशतकसाहित्य आदि का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया गया है। पांचवें अध्याय से १३वें तक उनके प्रबन्ध काव्य- 'मूकमाटी' का गहन अध्ययन और चौदहवें में उनके समग्र साहित्यिक अवदान का मूल्यांकन है ।
आपका जन्म कर्नाटक के बेलगाम जिलान्तर्गत सदलगा नामक ग्राम में १० अक्टूबर १९४६ ई० को मल्लप्पा नामक साहूकार की धर्मपत्नी श्रीमतीजी की कुक्षि से हुआ था। इनका पारिवारिक नाम विद्या था। इनके माता-पिता धर्मपारायण थे। बचपन से ही बालक के हृदय में तीर्थों और साधु-सन्तों के प्रति असीम लगाव था । आचार्यश्री शान्तिसागर जी के प्रवचनों से इनके अन्तःकरण की शुद्धि हुई। इनकी स्मरणशक्ति अद्भुत थी। ये जो भी चीज एक बार पढ़ते थे उसे कण्ठस्थ कर लेते थे । अतः लोग इन्हें गिनी कहते थे। कन्नड़ में गिनी तोते को कहते हैं । यद्यपि खेलकूद और चित्रकला आदि में इनकी रुचि थी पर धर्मभावना क्रमशः अभिवृद्ध हो रही थी। बीस वर्ष की आयु में चुपके से जयपुर जाकर आचार्य देशभूषण के चरणों में उपस्थित होकर इन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया। हासन (कर्नाटक) के तीर्थ श्रवणबेलगोला स्थित भगवान् गोम्मटेश्वर की विशाल प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक का धर्मोत्सव देखकर इनमें धर्मभावना और दृढ़ हुई और वे मदनगंज (किशनगढ़) में विराजमानमुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज की सेवा में जा पहुँचे। वहां आपने पं० महेन्द्रकुमार शास्त्री से हिन्दी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया साथ ही व्याकरण, छन्द, नीति आदि पर संस्कृत - प्राकृत भाषा में रचे गये ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। आचार्य ज्ञानसागर जी दिगम्बर सम्प्रदाय के एक अत्यन्त प्रभावशाली सन्त थे । उन्होंने विद्याधर को (३० जून १९६८) को
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